Tuesday, 24 January 2017

स्वामी भक्त

*कुतुबुद्दीन की मौत*

इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई. ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया. अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है.

कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था. उसका सबसे कडा बिरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा. उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और  उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया.

एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया. इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया. दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि- बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा. कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" चुना.

कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा. राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया. राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई बार किये, जिससे कुतुबुद्दीन बही पर मर गया.

इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक पर सवार होकर वहां से निकल गए. कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके. शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका. वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा.

वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया. कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है. धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं !


जय क्षात्र धर्म 🚩
 स्वाभिमान अमर रहे 🚩
" श्री क्षत्रिय राजपूत इतिहास शौध संसथान  " सहारनपुर :- +91-9412186747

Monday, 16 January 2017

इतिहास से छेड छाड भाग 1

जय श्री राम जय क्षात्र धर्म 

बहुत जल्द समाज कौ समर्पित  

भूमिका                                                                

" इति हैवमासीदितय: व स इतिहास  " अर्थात् - यह निश्चय से इस प्रकार हुआ था  , यह जो कहाँ जाता है वह इतिहास है  ! यह समय नई नई शोधो का समय कहाँ जा सकता है  , क्युकी इस समय कइ एसी जातियो का इतिहास उभरकर आया है जिनका वासत्व मे इतिहास मे कोइ स्थान है ही नही  , यदि है तो ना के बराबर ही  !  किंतू प्रश्न यह है कि एसा क्यु हो रहाँ है  ? इसका उत्तर 19वी व 20वी सदि मे मिलता है कि किस प्रकार उस समय के विदेशी इतिहासकारो व लेखको ने भारत के वीर सपूतो का इतिहास बिगाडना आरंभ कर दिया था  , विदेशी ही नही बल्की कुछ भारतिय इतिहासकार भी अंग्रेजो के लिखे इतिहास का अनुसरण करके वही भ्रम फैलाने का कार्य करते रहे जैसा इऩ अंग्रेजो ने किया  जिसके परिणाम स्वरूप भारत का हर व्यक्ति कन्नोज नरेश जयचंद को देशद्रोही मान बैठा  , जबकी अन्य इतिहासकारो ने इस कथन पर कइ लेख लिखे है जिसमे उनहोने जयचंद पर देशद्रोह के आरोप का खंडन किया है  , उसी प्रकार आमेर नरेश मान सिंह कछवाहा का भी चरित्र हनन बडी होशियारी के साथ इतिहास के शत्रुऔ ने किया है  ! इसी राह मे वर्तमान कि प्रतेक जाती खुद का इतिहास जो बिल्कुल अप्रमाणित है उसको उजागर कर देश व पाठको को भ्रमित कर रही है जिस कारण विवश होकर मुझे मेरी कलम का सहारा लेना पडा  , क्युकी मेने इतिहास को बहुत ही गहराइ से महसूस किया है  , अधयन्न करते समय खुद की कल्पना उस काल मे करी है जब इस भूमी पर क्षत्रियो का ही शाशन था  , जब एसे झुठे इतिहासो का सामना हुआ तब  मन मे बहुत ही भयंकर पिडा उतपन्न होती थी  !
      इतिहास के साथ इतनी ज्यादा छेड छाड जो मेरी द्रष्टी मे एक भिष्ण अपराध है हो रही थी कि मै स्वयं को रोक नही पाया और इतिहास का सहि पुनर्लेखन करने का संकल्प लेकर मै इसी दिशा मे अग्रसर हो गया  ! इतिहास मे छेड छाड का पर्दाफाश करने वाले महान इतिहासकार डाँ पि एन औन  , ठाकुर इश्वर सिंह मढाड आदि से मैने प्रेरणा लेकर यह कार्य आरंभ किया  , दुख की बात यह है आज स्व•ठाकुर इश्वर सिंह मढाड जी हमारे साथ नही है जिस कारण इतिहास जगत को एक चौट लगी है  , किंतू उनके लेख व पुस्तकों ने क्षत्रिय इतिहास मे फिर से जिवनी शक्ति का विकास किया है  ! 
इसी कडी मे आज इस पुस्तक के प्रथम भाग के माध्यम से मै तथ्यो सहित कइ एसे मतो का खंडन करूंगा जिनका कोइ ना तो आधार है व ना ही प्रमाण  ! *इतिहास से छेड छाड* ( गूजर व प्रतिहार ) जैसा की नाम से प्रतित हो ही जाता है कि पुसतक मे क्या वर्णित है  ! साधन व धन के बल पर कोइ किसी की जमीन  , मकान आदि पर अधिकार आवश्य कर सकता है किंतू इतिहास पर नही ! गूजर इतिहास पर वर्तमान मे इतनी अप्रमाणित पुसतके प्रकाशिक हो रही है जिनके कारण इतिहास जगत मे बहुत सी त्रुटिया सामने आइ हे जैसे गुर्जर प्रतिहार वंश को लेकर आइ है !  प्रतिहार वंश से पहले गुर्जर लिखा होने के कारण कइ विदेशी इतिहासकारो ने इस वंश को  गुशुर ( गूजर)  जाती से जोड दिया है जो बिल्कुल निरादर है !
प्रसिद्ध इतिहास के•एम•मुनशी  , डाँ बिंदयाराज चौहान जी  , देवी सिंह जी मंडावा आदि महान इतिहासकारो ने यह सप्षट किया है कि गुर्जर प्रतिहार मे गुर्जर जाती नही अथवा स्थान का बोध कराता है  , अब प्रश्न ये उठता है कि गुर्जर नाम पडा कैसे  ?इस प्रशन का उत्तr पुण्डीर क्षत्रियो कि कुलेदेवी दधिमाता जिनका प्राचीन मंदिर राजस्थान के जिला नागौर की जायल तहसील मे गोठ मंगलोद गाँव मे स्थित है मे एक शिलालेख अंतिक है जिसमे यह वर्णित है कि *वहां कि जौजरी नदी के कारण इसका नाम गुर्जर प्रदेश पुकारा गया है*  व डाँ गोपिनाथ शर्मा  तथा औझा जी गुर्जर शब्द का अर्थ प्रदेश विशेष मानते है शिलालेखो मे इस प्रदेश के शासक को गुर्जेश्वर या गुर्जर कहाँ गया  !
सन् 941 ई • मे कन्नड के सुप्रसिद्घ कवि पम्प ने *विक्रमार्जुन* नामक काव्य रचना करी जिसने उसने वर्णन किया है कि ' अरिकेसरी के पिता नरसिंह द्वितीय ने गुर्जर राज महीपाल को परास्त कर उसे राजश्री छीन ली '  यदि इस पंक्ति पर ध्यान दिया जाए तो गुर्जर राज महीपाल का अर्थ यही समझ मे आता है कि वह गुर्जर देश ( गुर्जरत्रा)  के राजा था ना कि गूजर जाती के  !
प्रतिहारो के इतिहास पर पुनह शुद्ध रूप से प्रकाश डालने वाली बहुत सी पुस्तके उपलब्द हो गइ है जो महान विद्वानो  द्वारा लिखी गइ है इतिहासकारो ने जो शोध करी है जो सिद्ध करती है कि गुर्जर प्रदेश सूचक है ना की जाति सुचक है वह आगे वर्णित किया है .
अत: अब पाठको को मेरी वह रचना प्रसतुत करता हूँ जिसमे मैने सत्य सामने लाने का प्रयास किया है  , किसी तरह की कोइ त्रुटीयाँ व खामियाँ यदि रह गइ हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ  ! 
                                                                                                  धन्यावाद  !

                                                            यश प्रताप सिंह अंब्हैटा चाँद (कुँवर बिसलदेव के पुण्डीर) 








संपर्क - +91-9412186747 , e-mail - yashpundir63@gmail.com



वीरवर योद्धा राजा चाँद सिंह पुण्डीर (चंद्रसेन)  के पुत्र धीर सिंह पुण्डीर  , जो पुण्डीरो के जुझार योद्धा रहे है जिनहोने सर कटने के बाद भी कइ पठानो का वद्ध किया था   !

पुस्तक -: "सूर्यकुल पुण्डीर वंश" जल्द ही समाज को समर्पित  !
जय क्षात्र धर्म