जय क्षात्र धर्म जय भवानी.....
आज इतिहास मे बिना कुछ किए खुद को उच्च साबित करने का भरपूर प्रयास हमारे कुछ गुज्जर भाइ कर रहे है... इस कडी मे उनहोने कइ पोसट्स व कुछ पुस्तके भी लिखी जिसमे सम्राट मिहीर भोज , प्रथ्विराज चौहान , बाप्पा रावल , शिवाजी आदी सभी क्षत्रिय यौद्धाऔ को गुर्जर बनानै का प्रयास किया है..!
जबकी यै ही खुद कि सही उतपत्ती खोजने मे असमर्थ है , देखिए गुज्जरो की उतपत्ती उनही कि जुबानी. ..
1- गुर्जर हुणौ के वंशज है .
2- कुषाण भी गुर्जर है.
इतिहास सप्षट बताता है हुण हो या शक. यह सभी घुमंतू कबिले है जो पशुपालन का कार्य करते थे. !
V. M. Smith or Villiams Crooks ने तो गुजरो को साफ साफ श्वेत हुणो से संबंधित बताया है !
अब आशचर्य की बात यह हैवर्तमान के आधुनिक गुज्जर इतिहास प्रेमी खुद को हुण व कुषाण भी मानते है और खुद को क्षत्रिय भी बताने लगे है.. क्या ये संभव है ?
कहाँ हुणौ और कुषाणौ को क्षत्रिय लिखा है ???
गुर्जरो के इतिहासकार डाँ. सुधीर भाटी जी गुर्जरो को हुण से जोडते है वही दूसरी और एक और गुर्जर इतिहासकार डा. के आर गुर्जर महाराज दशरथ को गुर्जर बताकर क्षत्रिय इतिहास का अपमान करते है...
डाँ. सहाब कहते है गुरूतर शब्द का अर्थ गुर्जर है.. वह रामायण का एक श्लोक देते है जिसमे गुरूतर शब्द आया और इसी को गुर्जर शब्द की उतपत्ती मानी :-
" गतो दशरथ स्वर्ग योनो गुरूतरो गुरूव: "
जब्की इसका अगक सही से आकलन करे तो पता चलता है इस श्लोक से गुज्जरो का कोइ संबंध नही , इस श्लोक का सही अर्थ है " दशरथ जी अपने गुरू व गोरव के साथ स्वर्ग को गए "
अब आप बताइए क्या मतलब है एसे झुठै त्थ्यो का ??
डाँ. सी.वी.वैध ने गुर्जपशुपालक तथा क्रषी कर्म करने वाला बताकर वैशय वर्ण से माना है !
बात यह है कि प्राचीन प्राप्त शिलालेखो मे कइ बार गुर्जरान , गुर्जरत्रा , गुर्जेश्वर शब्द आए है , जिस कारण भ्रमित होकर कइयो ने इन शबदो को गुर्जर जाती से जोड लिया , जबकी महान इतिहासकार डाँ. के एम मुंशी जी ने अपनी पुस्तक ' द ग्लोरिज औफ डैट गुर्जर देश ' मे साफ साफ सिद्ध किया है कि ' प्रतिहारो ' ने खुद को कभीअपने आप गुर्जर शब्द का प्रयोग नही किया और यह भी सिद्ध किया है कि प्रतिहार गुर्जर देश के स्वामी होने के कारण इनके विरोधियो ने गुर्जर प्रतिहार परिभाषित कर दिया ! जब इनके शिलालेखो का हम अध्यन्न करते है तो प्रतिहारो के शिलालेखो तथा कन्नोज के प्रतिहारो के शिलालेखो मे यह सप्ष्ट तोर पर बताया है कि अयोध्या के श्री राम के भ्राता लक्ष्मण के वंशज प्रतिहार है ! अभिलेखो मे इतना साभ वर्णन प्रतिहार उतपत्ती का इतना साफ वर्णन किया है पर फिर भी आजकल के कुछ विद्वान हठधर्मी से इनहे गुर्जर ही मानते है...
प्रतिहार वंश कि उतपत्ती मे कही भी गुर्जर शब्द नही आया :-
जोधपुर का शिलालेख
" स्वभ्राता रामभद्रस्य प्रतिहार क्रतं यत:
श्री प्रतिहार वंशजो यमतक्ष्चौन्नति माप्नुयात!! 3,4 !! "
घटियाल अभिलेख
" रहुतिलऔपडिहारो आसीसिर लक्खणोंतिरामस्य
तेण पडिहारवन्सो समुणईएत्थसम्पतो ! "
बताइए उतपत्ती मे ही जब गुर्जर शब्द नही तो क्यु ये जबरन खुद को प्रतुहीरो से जोड प्रसिद्धी पाने मे लगे है ?
भोज प्रतिहार की ग्वालियर प्रशस्ति का अध्यन्न या वि. स. 1030 की विग्रहराज की प्रशस्ति का या औसिया के महावीर मंदिर का लेख पढलो कही भी प्रतिहारो ने खुद के शिलालेखो मे गुर्जर नही लिखा तो ये जबरन इस वंश को गुर्जर बनाने मे लगे है ??
डाँ. के एम मुंशी की मान्यता है कि प्रतिहारो के लिए गुर्जर शब्द का प्रयोग जो राष्ट्रकूट और अरबो ने किया है वह किसी जाती का घोतक नही वह तो इनका गुर्जर देश का निवासी होने का संकेत करता है , औझा ने भी प्रतिहारो को गुर्जर ना मानकर क्षत्रिय कहाँ है !
गुर्जरत्रा ( गुर्जरात) या गुर्जर का अर्थ है क्या ??
गुर्जर एक संसक्रत शब्द है जिसका अर्थ है शत्रु नाशक व गुर्जरत्रा का अर्थ हैं शत्रु नाशको की भुमी !
अब गुर्जर जब खुद को हुण व कुषाण मानते है व है हि तो यह तो भारत के मूल नही थे व ना ही इनका संस्कृत भाषा से कोइ संबंध था ! हुणो का बहोत बडा कबिला गब गुर्जरत्रा पर निवास करने लगा तो यहाँ से निकासी के बाद गुर्जर कहलाया , वर्तमान मे हाडोती ( राजस्थान) व अन्य जगहो पर गुर्जरो के गाँव है जहाँ हुण गोत्र भी मिलता हैं
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महारष्ट्र मे गुर्जर नाइ , गुर्जर दर्जी , गुर्जर ब्रह्माण निवास करते है , जो जाती से गुर्जर नही अपितु उनके पुर्वज गुर्जरत्रा से वहा गए इसि तरह हुणो का यह घुमंतू चरवाहो का झुंड जब प्रतिहार राजपूतो ने भगाया तब ये बहार आकर गुर्जर कहलाए व धीरे धीरे गुज्जर , गुजर आदी..ncert कि पुस्तके इनहे ' घुमंतू चरवाहा ( gujar bakarwals) ' लिखते है
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वर्तमाम मे प्रतिहारो के वंशज क्षत्रिय है गुर्जर नही व प्रतिहारो की रियासत भी क्षत्रियो के पास है न कि गुज्जरो के पास....
----------- अगले भाग मे ओर एसी जानकारी दि जाएगी जो यह साबित करेगी कि गुजजरो का क्षत्रियो से कोइ संबंध नही , संबंध है तो वर्ण शंकरता का केवल ----------
-- धन्यावाद !
" श्री क्षत्रिय राजपूत इतिहास शौध संसथान , सहारनपुर " , शौधकर्ता :- क्षत्रिय यश प्रताप सिंह अंब्हैटा चाँद ( कुँ बिसलदेव के पुण्डीर ) .... +91-8755011059