Tuesday, 25 April 2017

स्पष्ट छवी उभर रही है झुठे इतिहास की

नई किताब में दावा : जोधाबाई राजपूत नहीं, पुर्तगाली थीं!

ख़बर न्यूज़ डेस्क , अंतिम अपडेट: गुरुवार अप्रैल 6, 2017 09:59 AM IST
   



राजकुमारी जोधाबाई के अस्तित्व को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां हैं
जोधाबाई के काल्पनिक होने की भी खबरें आती रही हैं
ऐश्वर्या राय ने जोधाबाई के किरदार को परदे पर निभाया
पणजी: राजकुमारी जोधाबाई के अस्तित्व को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां हैं. उनका उल्लेख आमतौर पर मुगल सम्राट अकबर की पत्नी और जहांगीर की मां के रूप में मिलता है, लेकिन जोधाबाई के काल्पनिक होने की भी खबरें आती रही हैं. अब एक नई किताब में जोधाबाई के पुर्तगाली होने का दावा किया गया है. इतिहासकारों ने जोधाबाई को अपने-अपने नजरिए से पेश किया है. जोधाबाई के जीवन को बॉलीवुड फिल्म 'जोधा-अकबर' में ऐश्वर्या राय बच्चन ने बेहतरीन तरीके से पर्दे पर पेश किया है.

गोवा के लेखक लुईस डी असीस कॉरिया ने अपनी किताब 'पुर्तगीज इंडिया एंड मुगल रिलेशंस 1510-1735' में कहा है कि जोधाबाई वास्तव में एक पुर्तगाली महिला थीं, जिनका नाम डोना मारिया मैस्करेनहास था, जो पुर्तगाली जहाज से अरब सागर होते हुए आईं और जिसे 1500वीं शताब्दी के मध्य में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने पकड़ कर सम्राट अकबर को भेंट कर दिया था. डोना के साथ उनकी बहन जुलियाना भी थीं.

कॉरिया ने पणजी में किताब के लोकार्पण कार्यक्रम से इतर से कहा, "जब डोना मारिया अकबर के दरबार में पहुंचीं तो अकबर को उससे प्यार हो गया. उस वक्त अकबर की उम्र 18 वर्ष और डोना की 17 वर्ष थी. अकबर पहले से शादीशुदा था, बावजूद इसके उसने डोना के प्रति आसक्त होकर उसे और उसकी छोटी बहन जुलियाना को अपने हरम में रख लिया."

कॉरिया कहते हैं, "पुर्तगाली और कैथोलिक यह स्वीकार नहीं कर पाए कि उनके समुदाय का कोई शख्स हरम में रहे, जबकि दूसरी तरफ मुगल यह स्वीकार नहीं कर सकते थे कि फिरंगी (ईसाई) समुदाय (जिन्होंने शुरू से ही मुगलों के विरुद्ध हल्ला बोल रखा था) की महिला मुगल की पत्नी बने. इस वजह से ब्रिटिशों और उस काल के मुगल इतिहासकारों ने जोधाबाई को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा की."

उन्होंने कहा कि यही वजह है कि अकबर और जहांगीर के दस्तावेजों में जोधाबाई के अस्तित्व का पता ही नहीं चलता. ब्रोडवे पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित 173 पृष्ठों की इस किताब में कहा गया है कि मारिया मैस्करेनहास जहांगीर की मां हो सकती हैं, और उन्हें अक्सर उनका जिक्र मरियम-उल-जमानी के रूप में आया है, और प्राचीन एवं लोकप्रिय कथाओं में उन्हें जोधाबाई या हरकाबाई के नाम से भी जाना जाता है. कॉरिया ने कहा कि मरियम-उल-जमानी का मुगल दस्तावेजों में जहांगीर की मां के रूप में कहीं भी जिक्र नहीं है.

कॉरिया ने अपनी किताब में कहा है, "यह एक रहस्य ही है कि आखिर मुगल इतिहासकर (अब्द अल-कादिर) बदाउनी और अबुल फजल, जहांगीर की मां का उल्लेख उसके नाम से क्यों नहीं करते. क्या जहांगीर का जन्म महान राजपूत साम्राज्य की किसी बेटी से हुआ था. यकीनन, वह इस तथ्य का बखान करना चाहता था कि मुगल, राजपूतों के साथ संधि करने के इच्छुक थे."

कॉरिया (81) ने इतिहासकार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शीरीन मोसवी के हवाले से कहा, "अकबरनामा और किसी अन्य मुगल दस्तावेज में जोधाबाई का कोई उल्लेख नहीं है. अकबर ने कछवा वंश की एक राजकुमारी और भामाल की बेटी से विवाह किया था, लेकिन उसका नाम जोधाबाई नहीं था."

कॉरिया ने यह भी कहा कि सम्राट जहांगीर के ईसाई और यहूदी मिशनरीज के प्रति संरक्षणवादी होने से पता चलता है कि उनका जन्म राजपूत रानी से नहीं, बल्कि पुर्तगाली महिला से है. लेखक कहते हैं, "यह वास्तव में रहस्य है कि आखिर क्यों जहांगीर के वृतांत में उसकी मां का उल्लेख नहीं है. क्या वह मुस्लिम या हिंदू नहीं थी? क्या वह जन्म या दर्जे से मुस्लिम या हिंदू नहीं थी? क्या इसलिए जहांगीर मरियम-उल-जानी के नाम से उसका उल्लेख करता है, क्योंकि उसकी मां फिरंगी थी." (इनपुट्स IANS से)

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

Monday, 13 February 2017

ठिकाना अंब्हैटा चाँद का इतिहास


पुण्डीर क्षत्रियो के गाँव अंब्हैटा चाँद का इतिहास  --

यू तो राजपूतो ने प्राचीन समय से ही अनेक राज्यो  , देश  , स्थान पर बाहुबल से अधिकार किया व उसे अबाद किया है  , उसी तरह " गाँवो को बसाया " से क्या मतलब है उसपर थोडी जानकारी देने का प्रयास कर रहा हूँ जितना मै समझ सका हूँ एसा ही होता होगा  ! 

राजा चाँद सिंह पुण्डीर जो कि संम्राट प्रथ्वीराज चौहान के वीर सेनापती व मित्र थे इनके 7 पुत्र हुए  , राजा धीर सिंह  , बिसलदेव  , साहबदेव , उदय देव आदि  , इनमे कुँवर बिसलदेव की वंश श्रंखला मे राजा मान सिंह  , आदू सिंह  , खेता सिंह आदी हुए व एक वीर राणा रायदल हुए  ! भाट बताते है कि रायदल नए स्थान की खौज मे अपने कुटुंब सहीत यमुनापार क्षेत्र मे घूम रहै थै तब उनहे रास्ते मे एक ब्राह्मण परिवार चिंता मे मिला  , रायदल जी ने चिंता का कारण पुछा तो उनहोनी बताया की उनके गाँव अंब्हैटा मे पिले पंडित ( जो इंसानो का मास खाते थे)  रहते है उनहोने मेरी बेटी का डोला मांगा  , उनसे बचकर हम गाँव छोड बहार भाग रहे है  , इतना सुनकर रायदल जी ने अंब्हैटा पर अधिकार करने का मन बनाया और पिले पंडितो को दंड देने के लिऐ उस और चल पडे और दूसरे दिन अंब्हैटा पहुँच गए  , वहाँ जाकर देखा कि पिले पंडित हमेसा पलकटि ( एक हथियार) लेकर रहते है और झुंड मे रहतै है कही से भी वार कर सकते है  तबरायद जी के पास एक औरत आई (चूढी जाति कि) उसने बताया कब हमला करना है , उसके बताए अनुसार रायदल जी व उनके कुटुंब वाले पिले पंडितो पर टूट पडे और उनको काट काट के कुए मे गेरतै गए  , किंतू उनसे एक गलती हो गइ  , जिस औरत ने उनहे रासता बताया था मारने का उस औरत पर भी तलवार चल गइ और वह मर गइ और मरतै मरतै श्राप देकर गइ कि इस गाँव की लडकिया शादी केै बाद सुखी नही रहेगी  , किंतू इस गलती की क्षमा याचना करने पर वह बोली यदि शादी के बाद लडकी मुझे पुजने आएगी तो सही रहेगा वर्ना कभी खुश नही रहैगी  , इसी लिए आज तक गाँव मे बसंती माता के नाम से पुजी जाती है !
अंब्हैटा चाँद के आज जहाँ शमशान घाट है वहां से घटना हुइ थी  , तब वहाँ से दूसरी तरफ रायदल जी ने अधिकार कर अंब्हैटा का नाम अंब्हैटा चाँद किया ( क्युकी वह राजा चाँद सिंह पुण्डीर के वंशज थे)  ! और पुण्डरी सति की स्थापना यहाँ कराइ जो आज तक पुजी जाती है  ! आज यह हिस्सा पाँच गाँव मे बट गया है  , अंब्हैटा चाँद  , मिरजापुर  , भगवानपुर  , टपरी  , आमवाला ! जो पंचगवी के नाम से जिला सहारनपुर मे मशहूर है ! 

इस घटना से यह पता लगता है कि गाँव राजपूतो ने नही बसाए  , वो तो पहले से बसे बसाए थै  , राजपूतो ने उनपर साशन अधिकार कर उसको अपना बनाया है...


वंशावली इस प्रकार है ---

महाराज पुण्डरीक (चौथी शताब्दी  )
असम
धनवंत 
बाहुनीक
राजा लक्ष्मण कुमार ( तिलंग देव = प्रथम पुण्डीर राजय तिलंगाना की स्थापना )
जढासुर
मढासुर ( कुरूक्षेत्र मे पुण्डरी नगर कि स्थापना करी व पुण्डीर राज्य की नीव रखी)
राजा सुफे देव 
राजा ईशम सिंह ( सतमासा जन्मा)
सीरबेमल
बीडोजी
राजा कदंब
वासुदेव
राजा कुंथल ( हरिद्वार मे मायापुरी राज्य बसाया)
सलाखन देव ( सुलखन )
राजा चाँद सिंह पुण्डीर ( प्रथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत व योद्धा ...7 पुत्र हुए ) 
कुँवर बिसलदेव
राणा मान सिंह
आदू सिंह 
ठाकुर खेता सिंह
कुँवर संगत सिंह
बनेचंद सिंह
दयादारा सिंह
राजा  रायदल सिंह ( अंब्हैटा चाँद बसाया)
राणा  दल सिंह
खडक सिंह
त्रिलोकचंद सिंह
ठाकुर  किशनदास सिंह
ठाकुर चंद्रभाम सिंह
ठाकुर बसंता सिंह
राणा हरिराय सिंह
राज सिंह
अजीत सिंह
बासूं सिंह
ठाकुर गौहर सिंह
राणा फकिरा सिंह
राणा चमेला सिंह
ठाकुर रामानंद सिंह (पूर्व प्रधानाचार्या)
कुँवर देवानंद सिंह
भँवर यश प्रताप सिंह पुण्डीर व भँवर हर्ष पुण्डीर! 

🙏मेरे पूर्वज को नमन
जय क्षात्र धर्म 🚩
स्वाभिमान अमर रहे🚩
जय सति पुण्डरी 🚩

----------- " श्री क्षत्रिय इतिहास शोध संस्थान " सहारनपुर +91-9412186747

Saturday, 4 February 2017

वीर प्रतिहार वंश





--- > प्रतिहार क्षत्रिय राजवंश का इतिहास < ---

प्रतिहार क्षत्रिय (राजपूत) एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए। प्रतिहार एक शुद्ध क्षत्रिय वंश है जिसने गुर्जरादेश से गुज्जरों को खदेड़ कर गुर्जरदेश के स्वामी बने। इन्हे बेवजह ही गूजर जाति से जोड दिया जाता रहा है। जबकि प्रतिहारों ने अपने को कभी भी गुजर जाति का नही लिखा है। बल्कि नागभट्ट प्रथम के सेनापति गल्लक के शिलालेख जिसकी खोज डा. शांता रानी शर्मा जी ने की थी जिसका संपूर्ण विवरण उन्होंने अपनी पुस्तक " Society and culture Rajasthan c. AD. 700 - 900 पर किया है। इस शिलालेख मे नागभट्ट प्रथम के द्वारा गुर्जरों की बस्ती को उखाड फेकने एवं प्रतिहारों के गुर्जरों को बिल्कुल भी नापसंद करने की जानकारी दी गई है।

मनुस्मृति में प्रतिहार,परिहार, पडिहार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है। क्षत्रिय वंश की इस शाखा के मूल पुरूष भगवान राम के भाई लक्ष्मण जी हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार कहलाएं। ये सूर्यवंशी कुल के क्षत्रिय हैं। हरकेलि नाटक, ललित विग्रह नाटक, हम्मीर महाकाव्य पर्व, कक्कुक प्रतिहार का अभिलेख, बाउक प्रतिहार का अभिलेख, नागभट्ट प्रशस्ति, वत्सराज प्रतिहार का शिलालेख, मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति आदि कई महत्वपूर्ण शिलालेखों एवं ग्रंथों में परिहार वंश को सूर्यवंशी एवं साफ - साफ लक्ष्मण जी का वंशज
बताया गया है।

लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे,उन्ही के वंशज प्रतिहार है। इस वंश की 126 वीं पीढ़ी में राजा हरिश्चन्द्र प्रतिहार (लगभग 590 ईस्वीं) का उल्लेख मिलता है। इनकी दूसरी पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे।जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल प्रतिहार बना। इसी का पौत्र नागभट्ट प्रतिहार था, जो अदम्य साहसी,महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था।

इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका राज्य पश्चिम भारत में सबल रूप से उभरकर सामने आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय राजा नागभट्ट प्रथम है, जिसका राज्यकाल 730 से 760 माना जाता है। उसने जालौर को अपनी राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली। इसी समय अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और मालवा और गुर्जरात्रा राज्यों पर आक्रमण कर दिया। नागभट्ट ने इन्हे सिर्फ रोका ही नहीं, इनके हाथ से सैंनधन,सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया। 750 में अरबों ने पुनः संगठित होकर भारत पर हमला किया और भारत की पश्चिमी सीमा पर त्राहि-त्राहि मचा दी। लेकिन नागभट्ट कुद्ध्र होकर गया और तीन हजार से ऊपर डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया जिससे देश ने राहत की सांस ली। भारत मे अरब शक्ति को रौंदकर समाप्त करने का श्रेय अगर किसी क्षत्रिय वंश को जाता है वह केवल परिहार ही है जिन्होने अरबों से 300 वर्ष तक युद्ध किया एवं वैदिक सनातन धर्म की रक्षा की इसीलिए भारत का हर नागरिक इनका हमेशा रिणी रहेगा। 

इसके बाद इसका पौत्र वत्सराज (775 से 800) उल्लेखनीय है, जिसने प्रतिहार साम्राज्य का विस्तार किया। उज्जैन के शासक भण्डि को पराजित कर उसे परिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया। उस समय भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थी। 

1 प्रतिहार साम्राज्य- उज्जैन, राजा वत्सराज
2 पाल साम्राज्य- बंगाल , राजा धर्मपाल
3 राष्ट्रकूट साम्राज्य- दक्षिण भारत , राजा ध्रुव 

अंततः वत्सराज ने पालवंश के धर्मपाल पर आक्रमण कर दिया और भयानक युद्ध में उसे पराजित कर अपनी अधीनता स्वीकार करने को विवश किया। लेकिन ई. 800 में ध्रुव और धर्मपाल की संयुक्त सेना ने वत्सराज को पराजित कर दिया और उज्जैन एवं उसकी उपराजधानी कन्नौज पर पालों का अधिकार हो गया। 

लेकिन उसके पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने उज्जैन को फिर बसाया। उसने कन्नौज पर आक्रमण कर उसे पालों से छीन लिया और कन्नौज को अपनी प्रमुख राजधानी बनाया। उसने 820 से 825-826 तक दस भयावाह युद्ध किए और संपूर्ण उत्तरी भारत पर अधिकार कर लिया। इसने यवनों, तुर्कों को भारत में पैर नहीं जमाने दिया। नागभट्ट द्वितीय का समय उत्तम शासन के लिए प्रसिद्ध है। इसने 120 जलाशयों का निर्माण कराया-लंबी सड़के बनवाई। बटेश्वर के मंदिर जो मुरैना (मध्य प्रदेश) मे है इसका निर्माण भी इन्हीं के समय हआ, अजमेर का सरोवर उसी की कृति है, जो आज पुष्कर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां तक कि पूर्व काल में क्षत्रिय (राजपूत) योद्धा पुष्कर सरोवर पर वीर पूजा के रूप में नागभट्ट की पूजा कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते थे। 

नागभट्ट द्वितीय की उपाधि ‘‘परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर थी। नागभट्ट के पुत्र रामभद्र प्रतिहार ने पिता की ही भांति साम्राज्य सुरक्षित रखा। इनके पश्चात् इनका पुत्र इतिहास प्रसिद्ध सनातन धर्म रक्षक मिहिरभोज सम्राट बना, जिसका शासनकाल 836 से 885 माना जाता है। सिंहासन पर बैठते ही मिहिरभोज प्रतिहार ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में मिहिरभोज को 'सम्राट' उपाधि मिली थी।

अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे सम्राट भोज, मिहिर, प्रभास, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज परमेश्वर आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है। इतने विशाल और विस्तृत साम्राज्य का प्रबंध अकेले सुदूर कन्नौज से कठिन हो रहा था। अस्तु मिहिरभोज ने साम्राज्य को चार भागो में बांटकर चार उप राजधानियां बनाई। कन्नौज- मुख्य राजधानी, उज्जैन और मंडोर को उप राजधानियां तथा ग्वालियर को सह राजधानी बनाया। प्रतिहारों का नागभट्ट प्रथम के समय से ही एक राज्यकुल संघ था, जिसमें कई क्षत्रिय राजें शामिल थे। पर मिहिरभोज के समय बुंदेलखण्ड और कांलिजर मण्डल पर चंदलों ने अधिकार जमा रखा था। मिहिरभोज का प्रस्ताव था कि चंदेल भी राज्य संघ के सदस्य बने, जिससे सम्पूर्ण उत्तरी पश्चिमी भारत एक विशाल शिला के रूप में खड़ा हो जाए और यवन, तुर्क, हूण, कुषाण आदि शत्रुओं को भारत प्रवेश से पूरी तरह रोका जा सके पर चंदेल इसके लिए तैयार नहीं हुए। अंततः मिहिरभोज ने कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और इस क्षेत्र के चंदेलों को हरा दिया।

मिहिरभोज परम देश भक्त थे- उन्होने प्रण किया था कि उनके जीते जी कोई विदेशी शत्रु भारत भूमि को अपावन न कर पायेगा। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले आक्रमण कर उन राजाओं को ठीक किया जो कायरतावश यवनों को अपने राज्य में शरण लेने देते थे। इस प्रकार राजपूताना से कन्नौज तक एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण का श्रेय सम्राट मिहिरभोज को जाता है। मिहिरभोज के शासन काल में कन्नौज साम्राज्य की सीमा रमाशंकर त्रिपाठी की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ कन्नौज के अनुसार, पेज नं. 246 में, उत्तर पश्चिम् में सतलज नदी तक, उत्तर में हिमालय की तराई, पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण पूर्व में बुंदेलखण्ड और वत्स राज्य तक, दक्षिण पश्चिम में सौराष्ट्र और राजपूतानें के अधिक भाग तक विस्तृत थी। अरब इतिहासकार सुलेमान ने तवारीख अरब में लिखा है, कि हिंदू क्षत्रिय राजाओं में मिहिरभोज प्रतिहार भारत में अरब एवं इस्लाम धर्म का सबसे बडा शत्रु है सुलेमान आगे यह भी लिखता है कि हिंदुस्तान की सुगठित और विशालतम सेना मिहिरभोज की ही थी-

इसमें हजारों हाथी, हजारों घोड़े और हजारों
रथ थे। मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। मिहिरभोज का तृतीय अभियान पाल राजाओ के विरूद्ध हुआ। इस समय बंगाल में पाल वंश का शासक देवपाल था। वह वीर और यशस्वी था- उसने अचानक कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और कालिंजर में तैनात मिहिरभोज की सेना को परास्त कर किले पर कब्जा कर लिया। मिहिरभोज ने खबर पाते ही देवपाल को सबक सिखाने का निश्चय किया। कन्नौज और ग्वालियर दोनों सेनाओं को इकट्ठा होने का आदेश दिया और चैत्र मास सन् 850 ई. में देवपाल पर आक्रमण कर दिया। इससे देवपाल की सेना न केवल पराजित होकर बुरी तरह भागी, बल्कि वह मारा भी गया। मिहिरभोज ने बिहार समेत सारा क्षेत्र कन्नौज में मिला लिया। मिहिरभोज को पूर्व में उलझा देख पश्चिम भारत में पुनः उपद्रव और षड्यंत्र शुरू हो गये। 

इस अव्यवस्था का लाभ अरब डकैतों ने
उठाया और वे सिंध पार पंजाब तक लूट पाट करने लगे। मिहिरभोज ने अब इस ओर प्रयाण किया। उसने सबसे पहले पंजाब के उत्तरी भाग पर राज कर रहे थक्कियक को पराजित किया, उसका राज्य और 2000 घोड़े छीन लिए। इसके बाद गूजरावाला के विश्वासघाती सुल्तान अलखान को बंदी बनाया- उसके संरक्षण में पल रहे 3000 तुर्की और हूण डाकुओं को बंदी बनाकर खूंखार और हत्या के लिए अपराधी पाये गए पिशाचों को मृत्यु दण्ड दे दिया। तदनन्तर टक्क देश के शंकरवर्मा को हराकर सम्पूर्ण पश्चिमी भारत को कन्नौज साम्राज्य का अंग बना लिया। चतुर्थ अभियान में मिहिरभोज ने प्रतिहार क्षत्रिय वंश की मूल गद्दी मण्डोर की ओर ध्यान दिया। 

त्रवाण,बल्ल और माण्ड के राजाओं के सम्मिलित ससैन्य बल ने मण्डोर पर आक्रमण कर दिया। उस समय मण्डोर का राजा बाउक प्रतिहार पराजित ही होने वाला था कि मिहिरभोज ससैन्य सहायता के लिए पहुंच गया। उसने तीनों राजाओं को बंदी बना लिया और उनका राज्य कन्नौज में मिला लिया। इसी अभियान में उसने गुर्जरात्रा, लाट, पर्वत आदि राज्यों को भी समाप्त कर साम्राज्य का अंग बना लिया।

नोट : मंडोर के प्रतिहार (परिहार) कन्नौज के साम्राज्यवादी प्रतिहारों के सामंत के रुप मे कार्य करते थे। कन्नौज के प्रतिहारों के वंशज मंडोर से आकर कन्नौज को भारत देश की राजधानी बनाकर 220 वर्ष शासन किया एवं हिंदू सनातन धर्म की रक्षा की।

== प्रतिहार / परिहार क्षत्रिय वंश का परिचय ==

वर्ण - क्षत्रिय
राजवंश - प्रतिहार वंश
वंश - सूर्यवंशी 
गोत्र - कौशिक (कौशल, कश्यप)
वेद - यजुर्वेद
उपवेद - धनुर्वेद
गुरु - वशिष्ठ
कुलदेव - श्री रामचंद्र जी , विष्णु भगवान
कुलदेवी - चामुण्डा देवी, गाजन माता
नदी - सरस्वती
तीर्थ - पुष्कर राज ( राजस्थान )
मंत्र - गायत्री
झंडा - केसरिया
निशान - लाल सूर्य
पशु - वाराह
नगाड़ा - रणजीत
अश्व - सरजीव
पूजन - खंड पूजन दशहरा
आदि पुरुष - श्री लक्ष्मण जी
आदि गद्दी - माण्डव्य पुरम ( मण्डौर , राजस्थान )
ज्येष्ठ गद्दी - बरमै राज्य नागौद ( मध्य प्रदेश)

== भारत मे प्रतिहार / परिहार क्षत्रियों की रियासत जो 1950 तक काबिज रही ==

नागौद रियासत - मध्यप्रदेश
अलीपुरा रियासत - मध्यप्रदेश
खनेती रियासत - हिमांचल प्रदेश
कुमारसैन रियासत - हिमांचल प्रदेश
मियागम रियासत - गुजरात
उमेटा रियासत - गुजरात
एकलबारा रियासत - गुजरात

== प्रतिहार / परिहार वंश की वर्तमान स्थिति==

भले ही यह विशाल प्रतिहार क्षत्रिय (राजपूत) साम्राज्य 15 वीं शताब्दी के बाद में छोटे छोटे राज्यों में सिमट कर बिखर हो गया हो लेकिन इस वंश के वंशज आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैँ।
आजादी के पहले भारत मे प्रतिहार क्षत्रिय वंश के कई राज्य थे। जहां आज भी ये अच्छी संख्या में है।

मण्डौर, राजस्थान
जालौर, राजस्थान
लोहियाणागढ , राजस्थान
बाडमेर , राजस्थान
भीनमाल , राजस्थान
माउंट आबू, राजस्थान
पाली, राजस्थान
बेलासर, राजस्थान
शेरगढ , राजस्थान
चुरु , राजस्थान
कन्नौज, उतर प्रदेश
हमीरपुर उत्तर प्रदेश
प्रतापगढ, उत्तर प्रदेश
झगरपुर, उत्तर प्रदेश
उरई, उत्तर प्रदेश
जालौन, उत्तर प्रदेश
इटावा , उत्तर प्रदेश
कानपुर, उत्तर प्रदेश
उन्नाव, उतर प्रदेश
उज्जैन, मध्य प्रदेश
चंदेरी, मध्य प्रदेश
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
जिगनी, मध्य प्रदेश
नीमच , मध्य प्रदेश
झांसी, मध्य प्रदेश
अलीपुरा, मध्य प्रदेश
नागौद, मध्य प्रदेश
उचेहरा, मध्य प्रदेश
दमोह, मध्य प्रदेश
सिंगोरगढ़, मध्य प्रदेश
एकलबारा, गुजरात
मियागाम, गुजरात
कर्जन, गुजरात
काठियावाड़, गुजरात
उमेटा, गुजरात
दुधरेज, गुजरात 
खनेती, हिमाचल प्रदेश
कुमारसैन, हिमाचल प्रदेश
खोटकई , हिमांचल प्रदेश
जम्मू , जम्मू कश्मीर
डोडा , जम्मू कश्मीर
भदरवेह , जम्मू कश्मीर
करनाल , हरियाणा
खानदेश , महाराष्ट्र
जलगांव , महाराष्ट्र
फगवारा , पंजाब
परिहारपुर , बिहार
रांची , झारखंड

== मित्रों आइए अब जानते है प्रतिहार/परिहार वंश की शाखाओं के बारे में ==

भारत में परिहारों की कई शाखा है जो अब भी आवासित है। जो अभी तक की जानकारी मे है जिससे आज प्रतिहार/परिहार वंश पूरे भारत वर्ष में फैल गये। भारत मे परिहार लगभग 1000 हजार गांवो से भी ज्यादा जगहों में निवास करते है।

== प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय वंश की शाखाएँ ==

(1) ईंदा प्रतिहार
(2) देवल प्रतिहार
(3) मडाड प्रतिहार 
(4) खडाड प्रतिहार
(5) लूलावत प्रतिहार
(7) रामावत प्रतिहार
(8) कलाहँस प्रतिहार
(9) तखी प्रतिहार (परहार)

यह सभी शाखाएँ परिहार राजाओं अथवा परिहार ठाकुरों के नाम से है। 

आइए अब जानते है प्रतिहार वंश के महान योद्धा शासको के बारे में जिन्होंने अपनी मातृभूमि, सनातन धर्म, प्रजा व राज्य के लिए सदैव ही न्यौछावर थे।

** प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय वंश के महान राजा **

(1) राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार
(2) राजा रज्जिल प्रतिहार
(3) राजा नरभट्ट प्रतिहार
(4) राजा नागभट्ट प्रथम
(5) राजा यशोवर्धन प्रतिहार
(6) राजा शिलुक प्रतिहार
(7) राजा कक्कुक प्रतिहार
(8) राजा बाउक प्रतिहार
(9) राजा वत्सराज प्रतिहार
(10) राजा नागभट्ट द्वितीय
(11) राजा मिहिरभोज प्रतिहार
(12) राजा महेन्द्रपाल प्रतिहार
(13) राजा महिपाल प्रतिहार
(14) राजा विनायकपाल प्रतिहार
(15) राजा महेन्द्रपाल द्वितीय
(16) राजा विजयपाल प्रतिहार
(17) राजा राज्यपाल प्रतिहार
(18) राजा त्रिलोचनपाल प्रतिहार
(19) राजा यशपाल प्रतिहार
(20) राजा मेदिनीराय प्रतिहार (चंदेरी राज्य)
(21) राजा वीरराजदेव प्रतिहार (नागौद राज्य के संस्थापक )

प्रतिहार क्षत्रिय वंश का बहुत ही वृहद इतिहास रहा है इन्होने हमेशा ही अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान दिया है, एवं अपने नाम के ही स्वरुप प्रतिहार यानी रक्षक बनकर हिंदू सनातन धर्म को बचाये रखा एवं विदेशी आक्रमणकारियों को गाजर मूली की तरह काटा डाला, हमे गर्व है ऐसे हिंदू राजपूत वंश पर जिसने कभी भी मुश्किल घडी मे अपने आत्म विश्वास को नही खोया एवं आखरी सांस तक हिंदू धर्म की रक्षा की।

संदर्भ : 
(1) राजपूताने का इतिहास - डा. गौरीशंकर हीराचंद ओझा
(2) विंध्य क्षेत्र के प्रतिहार वंश का ऐतिहासिक अनुशीलन - डा. अनुपम सिंह
(3) भारत के प्रहरी - प्रतिहार - डा. विंध्यराज चौहान
(4) प्राचीन भारत का इतिहास - डा. विमलचंद पांडे
(5) उचेहरा (नागौद) का प्रतिहार राज्य - प्रो. ए. एच. निजामी
(6) राजस्थान का इतिहास - डा. गोपीनाथ शर्मा
(7) कन्नौज का इतिहास - डा. रमाशंकर त्रिपाठी
(8) Society and culture Rajasthan (700 -900) - Dr. Shanta Rani sharma
(9) Origin of Rajput - Dr. J. N. Asopa
(10) Glory that was Gurjardesh - Dr. K. M. Munshi.

प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय वंश ।।
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जय नागभट्ट।।
जय मिहिरभोज।।

Tuesday, 24 January 2017

स्वामी भक्त

*कुतुबुद्दीन की मौत*

इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई. ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया. अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है.

कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था. उसका सबसे कडा बिरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा. उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और  उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया.

एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया. इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया. दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि- बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा. कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" चुना.

कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा. राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया. राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई बार किये, जिससे कुतुबुद्दीन बही पर मर गया.

इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक पर सवार होकर वहां से निकल गए. कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके. शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका. वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा.

वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया. कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है. धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं !


जय क्षात्र धर्म 🚩
 स्वाभिमान अमर रहे 🚩
" श्री क्षत्रिय राजपूत इतिहास शौध संसथान  " सहारनपुर :- +91-9412186747

Monday, 16 January 2017

इतिहास से छेड छाड भाग 1

जय श्री राम जय क्षात्र धर्म 

बहुत जल्द समाज कौ समर्पित  

भूमिका                                                                

" इति हैवमासीदितय: व स इतिहास  " अर्थात् - यह निश्चय से इस प्रकार हुआ था  , यह जो कहाँ जाता है वह इतिहास है  ! यह समय नई नई शोधो का समय कहाँ जा सकता है  , क्युकी इस समय कइ एसी जातियो का इतिहास उभरकर आया है जिनका वासत्व मे इतिहास मे कोइ स्थान है ही नही  , यदि है तो ना के बराबर ही  !  किंतू प्रश्न यह है कि एसा क्यु हो रहाँ है  ? इसका उत्तर 19वी व 20वी सदि मे मिलता है कि किस प्रकार उस समय के विदेशी इतिहासकारो व लेखको ने भारत के वीर सपूतो का इतिहास बिगाडना आरंभ कर दिया था  , विदेशी ही नही बल्की कुछ भारतिय इतिहासकार भी अंग्रेजो के लिखे इतिहास का अनुसरण करके वही भ्रम फैलाने का कार्य करते रहे जैसा इऩ अंग्रेजो ने किया  जिसके परिणाम स्वरूप भारत का हर व्यक्ति कन्नोज नरेश जयचंद को देशद्रोही मान बैठा  , जबकी अन्य इतिहासकारो ने इस कथन पर कइ लेख लिखे है जिसमे उनहोने जयचंद पर देशद्रोह के आरोप का खंडन किया है  , उसी प्रकार आमेर नरेश मान सिंह कछवाहा का भी चरित्र हनन बडी होशियारी के साथ इतिहास के शत्रुऔ ने किया है  ! इसी राह मे वर्तमान कि प्रतेक जाती खुद का इतिहास जो बिल्कुल अप्रमाणित है उसको उजागर कर देश व पाठको को भ्रमित कर रही है जिस कारण विवश होकर मुझे मेरी कलम का सहारा लेना पडा  , क्युकी मेने इतिहास को बहुत ही गहराइ से महसूस किया है  , अधयन्न करते समय खुद की कल्पना उस काल मे करी है जब इस भूमी पर क्षत्रियो का ही शाशन था  , जब एसे झुठे इतिहासो का सामना हुआ तब  मन मे बहुत ही भयंकर पिडा उतपन्न होती थी  !
      इतिहास के साथ इतनी ज्यादा छेड छाड जो मेरी द्रष्टी मे एक भिष्ण अपराध है हो रही थी कि मै स्वयं को रोक नही पाया और इतिहास का सहि पुनर्लेखन करने का संकल्प लेकर मै इसी दिशा मे अग्रसर हो गया  ! इतिहास मे छेड छाड का पर्दाफाश करने वाले महान इतिहासकार डाँ पि एन औन  , ठाकुर इश्वर सिंह मढाड आदि से मैने प्रेरणा लेकर यह कार्य आरंभ किया  , दुख की बात यह है आज स्व•ठाकुर इश्वर सिंह मढाड जी हमारे साथ नही है जिस कारण इतिहास जगत को एक चौट लगी है  , किंतू उनके लेख व पुस्तकों ने क्षत्रिय इतिहास मे फिर से जिवनी शक्ति का विकास किया है  ! 
इसी कडी मे आज इस पुस्तक के प्रथम भाग के माध्यम से मै तथ्यो सहित कइ एसे मतो का खंडन करूंगा जिनका कोइ ना तो आधार है व ना ही प्रमाण  ! *इतिहास से छेड छाड* ( गूजर व प्रतिहार ) जैसा की नाम से प्रतित हो ही जाता है कि पुसतक मे क्या वर्णित है  ! साधन व धन के बल पर कोइ किसी की जमीन  , मकान आदि पर अधिकार आवश्य कर सकता है किंतू इतिहास पर नही ! गूजर इतिहास पर वर्तमान मे इतनी अप्रमाणित पुसतके प्रकाशिक हो रही है जिनके कारण इतिहास जगत मे बहुत सी त्रुटिया सामने आइ हे जैसे गुर्जर प्रतिहार वंश को लेकर आइ है !  प्रतिहार वंश से पहले गुर्जर लिखा होने के कारण कइ विदेशी इतिहासकारो ने इस वंश को  गुशुर ( गूजर)  जाती से जोड दिया है जो बिल्कुल निरादर है !
प्रसिद्ध इतिहास के•एम•मुनशी  , डाँ बिंदयाराज चौहान जी  , देवी सिंह जी मंडावा आदि महान इतिहासकारो ने यह सप्षट किया है कि गुर्जर प्रतिहार मे गुर्जर जाती नही अथवा स्थान का बोध कराता है  , अब प्रश्न ये उठता है कि गुर्जर नाम पडा कैसे  ?इस प्रशन का उत्तr पुण्डीर क्षत्रियो कि कुलेदेवी दधिमाता जिनका प्राचीन मंदिर राजस्थान के जिला नागौर की जायल तहसील मे गोठ मंगलोद गाँव मे स्थित है मे एक शिलालेख अंतिक है जिसमे यह वर्णित है कि *वहां कि जौजरी नदी के कारण इसका नाम गुर्जर प्रदेश पुकारा गया है*  व डाँ गोपिनाथ शर्मा  तथा औझा जी गुर्जर शब्द का अर्थ प्रदेश विशेष मानते है शिलालेखो मे इस प्रदेश के शासक को गुर्जेश्वर या गुर्जर कहाँ गया  !
सन् 941 ई • मे कन्नड के सुप्रसिद्घ कवि पम्प ने *विक्रमार्जुन* नामक काव्य रचना करी जिसने उसने वर्णन किया है कि ' अरिकेसरी के पिता नरसिंह द्वितीय ने गुर्जर राज महीपाल को परास्त कर उसे राजश्री छीन ली '  यदि इस पंक्ति पर ध्यान दिया जाए तो गुर्जर राज महीपाल का अर्थ यही समझ मे आता है कि वह गुर्जर देश ( गुर्जरत्रा)  के राजा था ना कि गूजर जाती के  !
प्रतिहारो के इतिहास पर पुनह शुद्ध रूप से प्रकाश डालने वाली बहुत सी पुस्तके उपलब्द हो गइ है जो महान विद्वानो  द्वारा लिखी गइ है इतिहासकारो ने जो शोध करी है जो सिद्ध करती है कि गुर्जर प्रदेश सूचक है ना की जाति सुचक है वह आगे वर्णित किया है .
अत: अब पाठको को मेरी वह रचना प्रसतुत करता हूँ जिसमे मैने सत्य सामने लाने का प्रयास किया है  , किसी तरह की कोइ त्रुटीयाँ व खामियाँ यदि रह गइ हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ  ! 
                                                                                                  धन्यावाद  !

                                                            यश प्रताप सिंह अंब्हैटा चाँद (कुँवर बिसलदेव के पुण्डीर) 








संपर्क - +91-9412186747 , e-mail - yashpundir63@gmail.com



वीरवर योद्धा राजा चाँद सिंह पुण्डीर (चंद्रसेन)  के पुत्र धीर सिंह पुण्डीर  , जो पुण्डीरो के जुझार योद्धा रहे है जिनहोने सर कटने के बाद भी कइ पठानो का वद्ध किया था   !

पुस्तक -: "सूर्यकुल पुण्डीर वंश" जल्द ही समाज को समर्पित  !
जय क्षात्र धर्म