--- > प्रतिहार क्षत्रिय राजवंश का इतिहास < ---
प्रतिहार क्षत्रिय (राजपूत) एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए। प्रतिहार एक शुद्ध क्षत्रिय वंश है जिसने गुर्जरादेश से गुज्जरों को खदेड़ कर गुर्जरदेश के स्वामी बने। इन्हे बेवजह ही गूजर जाति से जोड दिया जाता रहा है। जबकि प्रतिहारों ने अपने को कभी भी गुजर जाति का नही लिखा है। बल्कि नागभट्ट प्रथम के सेनापति गल्लक के शिलालेख जिसकी खोज डा. शांता रानी शर्मा जी ने की थी जिसका संपूर्ण विवरण उन्होंने अपनी पुस्तक " Society and culture Rajasthan c. AD. 700 - 900 पर किया है। इस शिलालेख मे नागभट्ट प्रथम के द्वारा गुर्जरों की बस्ती को उखाड फेकने एवं प्रतिहारों के गुर्जरों को बिल्कुल भी नापसंद करने की जानकारी दी गई है।
मनुस्मृति में प्रतिहार,परिहार, पडिहार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है। क्षत्रिय वंश की इस शाखा के मूल पुरूष भगवान राम के भाई लक्ष्मण जी हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार कहलाएं। ये सूर्यवंशी कुल के क्षत्रिय हैं। हरकेलि नाटक, ललित विग्रह नाटक, हम्मीर महाकाव्य पर्व, कक्कुक प्रतिहार का अभिलेख, बाउक प्रतिहार का अभिलेख, नागभट्ट प्रशस्ति, वत्सराज प्रतिहार का शिलालेख, मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति आदि कई महत्वपूर्ण शिलालेखों एवं ग्रंथों में परिहार वंश को सूर्यवंशी एवं साफ - साफ लक्ष्मण जी का वंशज
बताया गया है।
लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे,उन्ही के वंशज प्रतिहार है। इस वंश की 126 वीं पीढ़ी में राजा हरिश्चन्द्र प्रतिहार (लगभग 590 ईस्वीं) का उल्लेख मिलता है। इनकी दूसरी पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे।जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल प्रतिहार बना। इसी का पौत्र नागभट्ट प्रतिहार था, जो अदम्य साहसी,महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था।
इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका राज्य पश्चिम भारत में सबल रूप से उभरकर सामने आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय राजा नागभट्ट प्रथम है, जिसका राज्यकाल 730 से 760 माना जाता है। उसने जालौर को अपनी राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली। इसी समय अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और मालवा और गुर्जरात्रा राज्यों पर आक्रमण कर दिया। नागभट्ट ने इन्हे सिर्फ रोका ही नहीं, इनके हाथ से सैंनधन,सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया। 750 में अरबों ने पुनः संगठित होकर भारत पर हमला किया और भारत की पश्चिमी सीमा पर त्राहि-त्राहि मचा दी। लेकिन नागभट्ट कुद्ध्र होकर गया और तीन हजार से ऊपर डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया जिससे देश ने राहत की सांस ली। भारत मे अरब शक्ति को रौंदकर समाप्त करने का श्रेय अगर किसी क्षत्रिय वंश को जाता है वह केवल परिहार ही है जिन्होने अरबों से 300 वर्ष तक युद्ध किया एवं वैदिक सनातन धर्म की रक्षा की इसीलिए भारत का हर नागरिक इनका हमेशा रिणी रहेगा।
इसके बाद इसका पौत्र वत्सराज (775 से 800) उल्लेखनीय है, जिसने प्रतिहार साम्राज्य का विस्तार किया। उज्जैन के शासक भण्डि को पराजित कर उसे परिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया। उस समय भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थी।
1 प्रतिहार साम्राज्य- उज्जैन, राजा वत्सराज
2 पाल साम्राज्य- बंगाल , राजा धर्मपाल
3 राष्ट्रकूट साम्राज्य- दक्षिण भारत , राजा ध्रुव
अंततः वत्सराज ने पालवंश के धर्मपाल पर आक्रमण कर दिया और भयानक युद्ध में उसे पराजित कर अपनी अधीनता स्वीकार करने को विवश किया। लेकिन ई. 800 में ध्रुव और धर्मपाल की संयुक्त सेना ने वत्सराज को पराजित कर दिया और उज्जैन एवं उसकी उपराजधानी कन्नौज पर पालों का अधिकार हो गया।
लेकिन उसके पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने उज्जैन को फिर बसाया। उसने कन्नौज पर आक्रमण कर उसे पालों से छीन लिया और कन्नौज को अपनी प्रमुख राजधानी बनाया। उसने 820 से 825-826 तक दस भयावाह युद्ध किए और संपूर्ण उत्तरी भारत पर अधिकार कर लिया। इसने यवनों, तुर्कों को भारत में पैर नहीं जमाने दिया। नागभट्ट द्वितीय का समय उत्तम शासन के लिए प्रसिद्ध है। इसने 120 जलाशयों का निर्माण कराया-लंबी सड़के बनवाई। बटेश्वर के मंदिर जो मुरैना (मध्य प्रदेश) मे है इसका निर्माण भी इन्हीं के समय हआ, अजमेर का सरोवर उसी की कृति है, जो आज पुष्कर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां तक कि पूर्व काल में क्षत्रिय (राजपूत) योद्धा पुष्कर सरोवर पर वीर पूजा के रूप में नागभट्ट की पूजा कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते थे।
नागभट्ट द्वितीय की उपाधि ‘‘परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर थी। नागभट्ट के पुत्र रामभद्र प्रतिहार ने पिता की ही भांति साम्राज्य सुरक्षित रखा। इनके पश्चात् इनका पुत्र इतिहास प्रसिद्ध सनातन धर्म रक्षक मिहिरभोज सम्राट बना, जिसका शासनकाल 836 से 885 माना जाता है। सिंहासन पर बैठते ही मिहिरभोज प्रतिहार ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में मिहिरभोज को 'सम्राट' उपाधि मिली थी।
अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे सम्राट भोज, मिहिर, प्रभास, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज परमेश्वर आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है। इतने विशाल और विस्तृत साम्राज्य का प्रबंध अकेले सुदूर कन्नौज से कठिन हो रहा था। अस्तु मिहिरभोज ने साम्राज्य को चार भागो में बांटकर चार उप राजधानियां बनाई। कन्नौज- मुख्य राजधानी, उज्जैन और मंडोर को उप राजधानियां तथा ग्वालियर को सह राजधानी बनाया। प्रतिहारों का नागभट्ट प्रथम के समय से ही एक राज्यकुल संघ था, जिसमें कई क्षत्रिय राजें शामिल थे। पर मिहिरभोज के समय बुंदेलखण्ड और कांलिजर मण्डल पर चंदलों ने अधिकार जमा रखा था। मिहिरभोज का प्रस्ताव था कि चंदेल भी राज्य संघ के सदस्य बने, जिससे सम्पूर्ण उत्तरी पश्चिमी भारत एक विशाल शिला के रूप में खड़ा हो जाए और यवन, तुर्क, हूण, कुषाण आदि शत्रुओं को भारत प्रवेश से पूरी तरह रोका जा सके पर चंदेल इसके लिए तैयार नहीं हुए। अंततः मिहिरभोज ने कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और इस क्षेत्र के चंदेलों को हरा दिया।
मिहिरभोज परम देश भक्त थे- उन्होने प्रण किया था कि उनके जीते जी कोई विदेशी शत्रु भारत भूमि को अपावन न कर पायेगा। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले आक्रमण कर उन राजाओं को ठीक किया जो कायरतावश यवनों को अपने राज्य में शरण लेने देते थे। इस प्रकार राजपूताना से कन्नौज तक एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण का श्रेय सम्राट मिहिरभोज को जाता है। मिहिरभोज के शासन काल में कन्नौज साम्राज्य की सीमा रमाशंकर त्रिपाठी की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ कन्नौज के अनुसार, पेज नं. 246 में, उत्तर पश्चिम् में सतलज नदी तक, उत्तर में हिमालय की तराई, पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण पूर्व में बुंदेलखण्ड और वत्स राज्य तक, दक्षिण पश्चिम में सौराष्ट्र और राजपूतानें के अधिक भाग तक विस्तृत थी। अरब इतिहासकार सुलेमान ने तवारीख अरब में लिखा है, कि हिंदू क्षत्रिय राजाओं में मिहिरभोज प्रतिहार भारत में अरब एवं इस्लाम धर्म का सबसे बडा शत्रु है सुलेमान आगे यह भी लिखता है कि हिंदुस्तान की सुगठित और विशालतम सेना मिहिरभोज की ही थी-
इसमें हजारों हाथी, हजारों घोड़े और हजारों
रथ थे। मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। मिहिरभोज का तृतीय अभियान पाल राजाओ के विरूद्ध हुआ। इस समय बंगाल में पाल वंश का शासक देवपाल था। वह वीर और यशस्वी था- उसने अचानक कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और कालिंजर में तैनात मिहिरभोज की सेना को परास्त कर किले पर कब्जा कर लिया। मिहिरभोज ने खबर पाते ही देवपाल को सबक सिखाने का निश्चय किया। कन्नौज और ग्वालियर दोनों सेनाओं को इकट्ठा होने का आदेश दिया और चैत्र मास सन् 850 ई. में देवपाल पर आक्रमण कर दिया। इससे देवपाल की सेना न केवल पराजित होकर बुरी तरह भागी, बल्कि वह मारा भी गया। मिहिरभोज ने बिहार समेत सारा क्षेत्र कन्नौज में मिला लिया। मिहिरभोज को पूर्व में उलझा देख पश्चिम भारत में पुनः उपद्रव और षड्यंत्र शुरू हो गये।
इस अव्यवस्था का लाभ अरब डकैतों ने
उठाया और वे सिंध पार पंजाब तक लूट पाट करने लगे। मिहिरभोज ने अब इस ओर प्रयाण किया। उसने सबसे पहले पंजाब के उत्तरी भाग पर राज कर रहे थक्कियक को पराजित किया, उसका राज्य और 2000 घोड़े छीन लिए। इसके बाद गूजरावाला के विश्वासघाती सुल्तान अलखान को बंदी बनाया- उसके संरक्षण में पल रहे 3000 तुर्की और हूण डाकुओं को बंदी बनाकर खूंखार और हत्या के लिए अपराधी पाये गए पिशाचों को मृत्यु दण्ड दे दिया। तदनन्तर टक्क देश के शंकरवर्मा को हराकर सम्पूर्ण पश्चिमी भारत को कन्नौज साम्राज्य का अंग बना लिया। चतुर्थ अभियान में मिहिरभोज ने प्रतिहार क्षत्रिय वंश की मूल गद्दी मण्डोर की ओर ध्यान दिया।
त्रवाण,बल्ल और माण्ड के राजाओं के सम्मिलित ससैन्य बल ने मण्डोर पर आक्रमण कर दिया। उस समय मण्डोर का राजा बाउक प्रतिहार पराजित ही होने वाला था कि मिहिरभोज ससैन्य सहायता के लिए पहुंच गया। उसने तीनों राजाओं को बंदी बना लिया और उनका राज्य कन्नौज में मिला लिया। इसी अभियान में उसने गुर्जरात्रा, लाट, पर्वत आदि राज्यों को भी समाप्त कर साम्राज्य का अंग बना लिया।
नोट : मंडोर के प्रतिहार (परिहार) कन्नौज के साम्राज्यवादी प्रतिहारों के सामंत के रुप मे कार्य करते थे। कन्नौज के प्रतिहारों के वंशज मंडोर से आकर कन्नौज को भारत देश की राजधानी बनाकर 220 वर्ष शासन किया एवं हिंदू सनातन धर्म की रक्षा की।
== प्रतिहार / परिहार क्षत्रिय वंश का परिचय ==
वर्ण - क्षत्रिय
राजवंश - प्रतिहार वंश
वंश - सूर्यवंशी
गोत्र - कौशिक (कौशल, कश्यप)
वेद - यजुर्वेद
उपवेद - धनुर्वेद
गुरु - वशिष्ठ
कुलदेव - श्री रामचंद्र जी , विष्णु भगवान
कुलदेवी - चामुण्डा देवी, गाजन माता
नदी - सरस्वती
तीर्थ - पुष्कर राज ( राजस्थान )
मंत्र - गायत्री
झंडा - केसरिया
निशान - लाल सूर्य
पशु - वाराह
नगाड़ा - रणजीत
अश्व - सरजीव
पूजन - खंड पूजन दशहरा
आदि पुरुष - श्री लक्ष्मण जी
आदि गद्दी - माण्डव्य पुरम ( मण्डौर , राजस्थान )
ज्येष्ठ गद्दी - बरमै राज्य नागौद ( मध्य प्रदेश)
== भारत मे प्रतिहार / परिहार क्षत्रियों की रियासत जो 1950 तक काबिज रही ==
नागौद रियासत - मध्यप्रदेश
अलीपुरा रियासत - मध्यप्रदेश
खनेती रियासत - हिमांचल प्रदेश
कुमारसैन रियासत - हिमांचल प्रदेश
मियागम रियासत - गुजरात
उमेटा रियासत - गुजरात
एकलबारा रियासत - गुजरात
== प्रतिहार / परिहार वंश की वर्तमान स्थिति==
भले ही यह विशाल प्रतिहार क्षत्रिय (राजपूत) साम्राज्य 15 वीं शताब्दी के बाद में छोटे छोटे राज्यों में सिमट कर बिखर हो गया हो लेकिन इस वंश के वंशज आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैँ।
आजादी के पहले भारत मे प्रतिहार क्षत्रिय वंश के कई राज्य थे। जहां आज भी ये अच्छी संख्या में है।
मण्डौर, राजस्थान
जालौर, राजस्थान
लोहियाणागढ , राजस्थान
बाडमेर , राजस्थान
भीनमाल , राजस्थान
माउंट आबू, राजस्थान
पाली, राजस्थान
बेलासर, राजस्थान
शेरगढ , राजस्थान
चुरु , राजस्थान
कन्नौज, उतर प्रदेश
हमीरपुर उत्तर प्रदेश
प्रतापगढ, उत्तर प्रदेश
झगरपुर, उत्तर प्रदेश
उरई, उत्तर प्रदेश
जालौन, उत्तर प्रदेश
इटावा , उत्तर प्रदेश
कानपुर, उत्तर प्रदेश
उन्नाव, उतर प्रदेश
उज्जैन, मध्य प्रदेश
चंदेरी, मध्य प्रदेश
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
जिगनी, मध्य प्रदेश
नीमच , मध्य प्रदेश
झांसी, मध्य प्रदेश
अलीपुरा, मध्य प्रदेश
नागौद, मध्य प्रदेश
उचेहरा, मध्य प्रदेश
दमोह, मध्य प्रदेश
सिंगोरगढ़, मध्य प्रदेश
एकलबारा, गुजरात
मियागाम, गुजरात
कर्जन, गुजरात
काठियावाड़, गुजरात
उमेटा, गुजरात
दुधरेज, गुजरात
खनेती, हिमाचल प्रदेश
कुमारसैन, हिमाचल प्रदेश
खोटकई , हिमांचल प्रदेश
जम्मू , जम्मू कश्मीर
डोडा , जम्मू कश्मीर
भदरवेह , जम्मू कश्मीर
करनाल , हरियाणा
खानदेश , महाराष्ट्र
जलगांव , महाराष्ट्र
फगवारा , पंजाब
परिहारपुर , बिहार
रांची , झारखंड
== मित्रों आइए अब जानते है प्रतिहार/परिहार वंश की शाखाओं के बारे में ==
भारत में परिहारों की कई शाखा है जो अब भी आवासित है। जो अभी तक की जानकारी मे है जिससे आज प्रतिहार/परिहार वंश पूरे भारत वर्ष में फैल गये। भारत मे परिहार लगभग 1000 हजार गांवो से भी ज्यादा जगहों में निवास करते है।
== प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय वंश की शाखाएँ ==
(1) ईंदा प्रतिहार
(2) देवल प्रतिहार
(3) मडाड प्रतिहार
(4) खडाड प्रतिहार
(5) लूलावत प्रतिहार
(7) रामावत प्रतिहार
(8) कलाहँस प्रतिहार
(9) तखी प्रतिहार (परहार)
यह सभी शाखाएँ परिहार राजाओं अथवा परिहार ठाकुरों के नाम से है।
आइए अब जानते है प्रतिहार वंश के महान योद्धा शासको के बारे में जिन्होंने अपनी मातृभूमि, सनातन धर्म, प्रजा व राज्य के लिए सदैव ही न्यौछावर थे।
** प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय वंश के महान राजा **
(1) राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार
(2) राजा रज्जिल प्रतिहार
(3) राजा नरभट्ट प्रतिहार
(4) राजा नागभट्ट प्रथम
(5) राजा यशोवर्धन प्रतिहार
(6) राजा शिलुक प्रतिहार
(7) राजा कक्कुक प्रतिहार
(8) राजा बाउक प्रतिहार
(9) राजा वत्सराज प्रतिहार
(10) राजा नागभट्ट द्वितीय
(11) राजा मिहिरभोज प्रतिहार
(12) राजा महेन्द्रपाल प्रतिहार
(13) राजा महिपाल प्रतिहार
(14) राजा विनायकपाल प्रतिहार
(15) राजा महेन्द्रपाल द्वितीय
(16) राजा विजयपाल प्रतिहार
(17) राजा राज्यपाल प्रतिहार
(18) राजा त्रिलोचनपाल प्रतिहार
(19) राजा यशपाल प्रतिहार
(20) राजा मेदिनीराय प्रतिहार (चंदेरी राज्य)
(21) राजा वीरराजदेव प्रतिहार (नागौद राज्य के संस्थापक )
प्रतिहार क्षत्रिय वंश का बहुत ही वृहद इतिहास रहा है इन्होने हमेशा ही अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान दिया है, एवं अपने नाम के ही स्वरुप प्रतिहार यानी रक्षक बनकर हिंदू सनातन धर्म को बचाये रखा एवं विदेशी आक्रमणकारियों को गाजर मूली की तरह काटा डाला, हमे गर्व है ऐसे हिंदू राजपूत वंश पर जिसने कभी भी मुश्किल घडी मे अपने आत्म विश्वास को नही खोया एवं आखरी सांस तक हिंदू धर्म की रक्षा की।
संदर्भ :
(1) राजपूताने का इतिहास - डा. गौरीशंकर हीराचंद ओझा
(2) विंध्य क्षेत्र के प्रतिहार वंश का ऐतिहासिक अनुशीलन - डा. अनुपम सिंह
(3) भारत के प्रहरी - प्रतिहार - डा. विंध्यराज चौहान
(4) प्राचीन भारत का इतिहास - डा. विमलचंद पांडे
(5) उचेहरा (नागौद) का प्रतिहार राज्य - प्रो. ए. एच. निजामी
(6) राजस्थान का इतिहास - डा. गोपीनाथ शर्मा
(7) कन्नौज का इतिहास - डा. रमाशंकर त्रिपाठी
(8) Society and culture Rajasthan (700 -900) - Dr. Shanta Rani sharma
(9) Origin of Rajput - Dr. J. N. Asopa
(10) Glory that was Gurjardesh - Dr. K. M. Munshi.
प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय वंश ।।
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जय नागभट्ट।।
जय मिहिरभोज।।
बलिया में पांच गाँव नरौनि नरवर के परिहार यही बिहार के दर्जनों जिलो में गये है फतेहपुर में भी अच्छी संख्या है
ReplyDeleteपरिहार किश्तवाड़ जिला जम्मू कश्मीर राज्य में भी है।जो जिला डोडा के साथ मे है।
ReplyDeleteश्रीमान जी िजिज्ञासा है कि हमारे चूरू में कस्वां जाट कभी प्रतिहार रहे हैं कंवरपाल नाम का प्रतिहार राजा चूरू आया और उनकी संतानें कस्वां जाट हुई । कंसुूपाल या कंवरपाल जोधपुर मंडोर से आये 1068 में क़पया कंसपाल के िपिता एवं उनके पहले का वंश बताये 9414676552 पर। आपको ओम प्रकाश शर्मा
ReplyDeleteपश्चिमी राजस्थान में परिहार राजपूत काफी तादात में है।
ReplyDeleteऔर वो ज्यादातर मंडोर,माउंटआबू,और जालोर पली जोधपुर आदि रियासत से तालुक रखते है
रोहित सिंह परिहार
ठी.भदेसर
चित्तौड़गढ़
उदयपुर,
i want history of bhadesar palace
Deleteराष्ट्रकूट शिलालेखों की सूची है:
ReplyDeleteअवांछित और खंडित दासवतारा गुफा शिलालेख का उल्लेख है कि दांतिदुर्ग ने उज्जैन में उपहार दिए थे और राजा का शिविर गुर्जरा महल (उज्जैन में सभी संभावनाओं में) में स्थित था (मजूमदार और दासगुप्त, भारत का एक व्यापक इतिहास)।
अमोगवरास (साका संवत 793 = एडी 871) के संजन तांबे की प्लेट शिलालेख दांतिदुर्ग को उज्जैनिस दरवाजे के रखवाले (एल, वॉल्यूम XVIII, पृष्ठ 243,11.6-7) के गुर्जारा भगवान को बनाने के साथ, प्रतिहार नाम दिया गया
करका द्वितीय (एडी 812-13) की बड़ौदा प्लेट इंद्रदेव को फैलाती है, जिसे कहा जाता है कि अकेले ही गुर्जरा वंश के भगवान को उड़ान भरने के लिए रखा गया है (भारतीय पुरातन [अब से आईए], खंड XII, पृष्ठ 160, 11। 33-34)।बाद में उसी शिलालेख में कहा गया है कि करका ने गुर्जरा वंश के भगवान की दिशा में मालवा के शासक को सुरक्षा प्रदान की, जो गौड़ा और वंगा (मजूमदार और दासगुप्त, भारत का एक व्यापक इतिहास, पृष्ठ 455) पर उनकी जीत के कारण अपमानजनक होगया था।)।
गुजरात शाखा के ध्रुव III (एडी 867) की बागुरा तांबे की प्लेट ध्रुव द्वितीय के संदर्भ में कहती है कि 'उन्हें एक तरफ गुर्जरा जाति का सामना करना पड़ा और वल्लभा को दूसरी तरफ' (आईए, वॉल्यूम XII, पृष्ठ 188) का सामना करना पड़ा।
अमोगवर्सा के निलगुंडा शिलालेख (एडी 866) ने गोविंदा (जिसे जगतुंगा भी कहा जाता है) को 'केरल और मालवा और गौड़ा के लोगों को, गुर्जरा के साथ, जो कि चित्रकुटा के पहाड़ी किले में रहते थे' (एल, वॉल्यूम VI) ,पीपी 102-3, 11. 6-7)।
कृष्ण III (एडी 9 5 9) की करहद प्लेटें कहती हैं, 'उन्होंने जो सुखद शब्द बोलते थे, जिन्होंने गुर्जरा से डर दिया था' (एल, वॉल्यूम IV, पृष्ठ 283, 1. 22)।वही प्लेटें आगे कहती हैं कि दक्षिणी क्षेत्र में सभी गढ़ों की विजय सुनने पर, नाराज नज़र के माध्यम से, कलंजारा और चित्राकुटा के बारे में आशा गुर्जरा (इबिद।, पृष्ठ 284, 1. 44) से गायब हो गई।)।
गोविंदा III (एडी 805) का नेसरिका अनुदान भी गुर्जरा जाति की हार को उनके हाथों (एल, वॉल्यूम XXXIV, पृष्ठ 130,1 24) पर दर्शाता है।कहा जाता है कि छंदों के बाद के सेट में, उन्होंने अपने शाही चिन्ह के चौदह राजाओं को वंचित कर दिया है, जिनमें से एक गुर्जरा था।
Pad lo shilalekha thang se😆😆😆
गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत
ReplyDeleteकर्नल जेम्स टोड कहते है राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं।
पं बालकृष्ण गौड लिखते है जिसको कहते है रजपूति इतिहास तेरहवीं सदी से पहले इसकी कही जिक्र तक नही है और कोई एक भी ऐसा शिलालेख दिखादो जिसमे रजपूत शब्द का नाम तक भी लिखा हो। लेकिन गुर्जर शब्द की भरमार है, अनेक शिलालेख तामपत्र है, अपार लेख है, काव्य, साहित्य, भग्न खन्डहरो मे गुर्जर संसकृति के सार गुंजते है ।अत: गुर्जर इतिहास को राजपूत इतिहास बनाने की ढेरो सफल-नाकाम कोशिशे कि गई।
इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज थे।
लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।
स्मिथ ने कहा गुर्जर वंश, जिसने उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, गुर्जरा जाति का था।
डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा के वंशज हैं।
डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों व अन्य अग्निवंशीय राजपूतों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हैं।
इतिहासकार बागची,कनिंघम,एचडब्ल्यू बेली और राणा हसन अली के मुताबिक गुज्जर और कुशंस एक ही हैं। उनका कहना है कि कुषण राजा कनिष्क को रबाटक शिलालेख में "गुसुरा" (गुज़ुर्रा) जाति कहा है।गुशूर' शब्द का मतलब है कि वह व्यक्ति जो उच्च परिवार में पैदा हुआ है,रॉयल्स या शाही परिवार का सदस्य है
जैकेसन ने गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है।राजपूत गुर्जर साम्राज्य के सामंत थे गुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किए
shilalekha of Gurjar clan👇👇
नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है
।राजजर शिलालेख" में वर्णित "गुर्जारा प्रतिहारवन" वाक्यांश से। यह ज्ञात है कि प्रतिहार गुर्जरा वंश से संबंधित थे।
राष्ट्रकूट के रिकॉर्ड और अरब इतिहास भी गुरजरों परिवारों की पहचान करते हैं।
। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से हुआ है।
गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है
नागबट्टा के चाचा दड्डा प्रथम को शिलालेख में "गुर्जरा-नृपाती-वाम्सा" कहा जाता है, यह साबित करता है कि नागभट्ट एक गुर्जरा था, क्योंकि वाम्सा स्पष्ट रूप से परिवार का तात्पर्य है।
महिपाला,विशाल साम्राज्य पर शासन कर रहा था, को पंप द्वारा "गुर्जरा राजा" कहा जाता है। एक सम्राट को केवल एक छोटे से क्षेत्र के राजा क्यों कहा जाना चाहिए, यह अधिक समझ में आता है कि इस शब्द ने अपने परिवार को दर्शाया।
भडोच के गुर्जरों के विषय दक्षिणी गुजरात से प्राप्त नौ तत्कालीन ताम्रपत्रो में उन्होंने खुद को गुर्जर नृपति वंश का होना बताया
9वीं शताब्दी में परमार जगददेव के जैनद शिलालेख में कहा है कि गुर्जरा योद्धाओं की पत्नियों ने अपनी सैन्य जीत के परिणामस्वरूप अर्बुडा की गुफाओं में आँसू बहाए।
। मार्कंदई पुराण,स्कंध पुराण में पंच द्रविडो में गुर्जरो जनजाति का उल्लेख है।
के.एम.पन्निकर ने"सर्वे ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री "में लिखा है गुर्जरो ने चीनी साम्राज्य फारस के शहंसाह,मंगोल ,तुर्की,रोम ,मुगल और अरबों को खलीफाओं की आंधी को देश में घुसने से रोका और प्रतिहार (रक्षक)की उपाधि पायी,सुलेमान ने गुर्जरो को ईसलाम का बड़ा दुश्मन बताया था।
लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था।
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल,जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य अनेक भागों में विभक्त हो गया । इनमें से मुख्य भागों के नाम थे:
शाकम्भरी (सांभर) के चाहमान (चौहान)
दिल्ली के तौमर
मंडोर के गुर्जर प्रतिहार
बुन्देलखण्ड के कलचुरि
मालवा के परमार
मेदपाट (मेवाड़) के गुहिल
महोवा-कालिजंर के चन्देल
सौराष्ट्र के चालुक्य
राजपूतो के शिलालेख क्षत्रिय नाम से मिलते है। कुलीन क्षत्रियो को राजपुत्र कहा जाता था। कालान्तर में सभी क्षत्रिय स्वयम को कुलीन सिद्ध करने की होड़ में राजपुत्र का प्रयोग करने लगे। प्रतिहार सूर्यवंशी क्षत्रिय थे और उन्होंने गुजर देश पर विजय प्राप्त करके अपना शाशन शुरू किया इसलिए गुजर प्रतिहार कहलाये। कनिष्क और हूणों के द्वारा लंबे समय तक गुजर देश शासित रहा इसलिए उन्ही के वंसज अपने को गुजर कहलवाने लगे। हर्ष के समय इन्होंने विद्रोह भी किया जिसे हर्षवर्धन ने कुचल दिया और सभी गुजरो को वहां से जम्मू की तरफ भगा दिया। कुछ उत्तरी भारत की तरफ भाग गए। गुजर देश प्राचीन राज्य है। और इसका वर्णन स्थान के लिए ही आता है जाति के लिए नही। कालांतर में यह गुजरात्रा हो गया। अग्नि वंशीय चार ही क्षत्रिय है। चौहान, प्रतिहार, चालुक्य और परमार। और ये चारों आज भी राजपूत ही है। गुजर प्रतिहारो की गद्दी आज भी है मंडोर में और वो राजपूत ही है। तुमने जीतते भी शिलालेख ऊपर बताए उनमें सब झूठे है बस चार सही है और उन चारों में भी गुजर स्थान का नाम है जाति का नही।
Deleteसम्राट मिहिर भोज वीर गुर्जर वंश से थे प्रतिहार उपाधि हैजिसका मतलब होता है रक्षक
Deleteईसिलिये तो गुर्जरो को राष्ट्र रक्षक कहते हैं
जय हो गुर्जर सम्राट नागभट्ट जय सम्राट मिहिर भोज
सम्राट मिहिर भोज वीर गुर्जर वंश से थे प्रतिहार उपाधि हैजिसका मतलब होता है रक्षक
Deleteईसिलिये तो गुर्जरो को राष्ट्र रक्षक कहते हैं
जय हो गुर्जर सम्राट नागभट्ट जय सम्राट मिहिर भोज
ये गोचर से गुज्जर बने अब क्षत्रिय सम्राट मिहिर भोज जी को गुज्जरों का सम्राट बनाने के लिए अब ये गोचर गुज्जर से गुर्जर बन गए
Deleteमैं बचपन से देखता आ रहा हु ये अपने वाहनों पर गुज्जर लिखते आये है किंतु कुछ वर्षों से ये गुर्जर लिख रहे है।
वीर गुर्जर - प्रतिहार राजाओ के ऐतिहासिक अभिलैख प्रमाण
ReplyDeletePratihar was a tital(upadhi)👇👇
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1. सज्जन ताम्रपत्र (871 ई. ) :---
अमोघ वर्ष शक सम्वत
793 ( 871 ई . ) का
सज्जन ताम्र पञ ) :---- I
इस ताम्रपत्र अभिलेख मे लिखा है। कि राष्ट्र कूट शासक दन्तिदुर्ग ने 754 ई. मे "हिरण्य - गर्भ - महादान " नामक यज्ञ किया तो इस शुभ अवसर पर गुर्जर आदि राजाओ ने यज्ञ की सफलता पूर्वक सचालन हेतु यज्ञ रक्षक ( प्रतिहार ) का कार्य किया । ( अर्थात यज्ञ रक्षक प्रतिहारी का कार्य किया )
( " हिरणय गर्भ राज्यनै रुज्जयन्यां यदसितमा प्रतिहारी कृतं येन गुर्जरेशादि राजकम " )
{ सन्दर्भ :--एपिग्राफिक इडिका -- 18 , पृष्ठ 235 , 243 - 257 }
2. सिरूर शिलालेख ( :----
यह शिलालेख गोविन्द - III के गुर्जर नागभट्ट - II एवम राजा चन्द्र कै साथ हुए युद्ध के सम्बन्ध मे यह अभिलेख है । जिसमे " गुर्जरान " गुर्जर राजाओ, गुर्जर सेनिको , गुर्जर जाति एवम गुर्जर राज्य सभी का बोध कराता है।
( केरल-मालव-सोराषट्रानस गुर्जरान )
{ सन्दर्भ :- उज्जयिनी का इतिहास एवम पुरातत्व - दीक्षित - पृष्ठ - 181 }
3. बडोदा ताम्रपत्र ( 811 ई.) :---
कर्क राज का बडोदा ताम्रपत्र शक स. 734 ( 811-812 ई ) इस अभिलेख मे गुर्जरैश्वर नागभट्ट - II का उल्लेख है ।
( गोडेन्द्र वगपति निर्जय दुविदग्ध सद गुर्जरैश्वर -दि गर्गलताम च यस्या नीतवा भुजं विहत मालव रक्षणार्थ स्वामी तथान्य राज्यदद फलानी भुडक्तै" )
{ सन्दर्भ :- इडियन एन्टी. भाग -12 पृष्ठ - 156-160 }
4. बगुम्रा-ताम्रपत्र ( 915 ई. )
इन्द्र - तृतीय का बगुम्रा -ताम्र पत्र शक सं. 837 ( 915 ई )
का अभिलेख मे गुर्जर सम्राट महेन्द्र पाल या महिपाल को दहाड़ता गुर्जर ( गर्जदै गुर्जर - गरजने वाला गुर्जर ) कहा गया है ।
( धारासारिणिसेन्द्र चापवलयै यस्येत्थमब्दागमे । गर्जदै - गुर्जर -सगर-व्यतिकरे जीणो जनारांसति।)
{ सन्दर्भ :-
1. बम्बई गजेटियर, भाग -1 पृष्ट - 128, नोट -4
2. उज्जयिनी इतिहास तथा पुरातत्व, दीक्षित - पृष्ठ - 184 -185 }
5. खुजराहो अभिलेख ( 954 ई. ) :----
चन्दैल धगं का वि. स . 1011 ( 954 ई ) का खुजराहो शिलालैख सख्या -2 मे चन्देल राजा को मरु-सज्वरो गुर्जराणाम के विशेषण से सम्बोधित किया है ।
( मरू-सज्वरो गुर्जराणाम )
{ एपिग्राफिक इडिका - 1 पृष्ठ -112- 116 }
6. गोहखा अभिलेख :--
चैदिराजा कर्ण का गोहखा अभिलैख मे गुर्जर राजा को चेदीराजालक्ष्मणराजदैव दवारा पराजित करने का उल्लेख किया गया हे ।
( बगांल भगं निपुण परिभूत पाण्डयो लाटेरा लुण्ठन पटुज्जिर्जत गुज्जॆरेन्द्र ।
काश्मीर वीर मुकुटाचित पादपीठ स्तेषु क्रमाद जनि लक्ष्मणराजदैव )
{ सन्दर्भ :- 1. एपिग्राफिक इडिका - 11 - पृष्ठ - 142
2. कार्पस जिल्द - 4 पृष्ठ -256, श्लोक - 8 }
7. बादाल स्तम्भ लैख:--
नारायण पाल का बादाल सत्म्भ लैख के श्लोक संख्या 13 के अनुसार गुर्जर राजा राम भद्रदैव ( गुर्जर - नाथ) के समय दैवपाल ने गुर्जर- प्रतिहार के कुछ प्रदेश पर अधिकार कर लिया था ।
( उत्कीलितोत्कल कुलम हत हूण गर्व खव्वीकृत द्रविड गुर्जर-नाथ दप्पर्म )
{ सन्दर्भ :--एपिग्राफिक इडिका - 2 पृष्ठ - 160 - श्लोक - 13 }
8. राजोरगढ अभिलेख ( 960 ई. ) :--
गुजॆर राजा मथन दैव का वि. स. ( 960 ई ) का राजोर गढ ( राज्यपुर ) अभिलेख मे महाराज सावट के पुत्र गुर्जर प्रतिहार मथनदैव को गुर्जर वंश शिरोमणी तथा समस्त जोतने योग्य भूमि गुर्जर किसानो के अधीन उल्लेखित है ।
( श्री राज्यपुराव सिथ्तो महाराजाधिराज परमैश्वर श्री मथनदैवो महाराजाधिरात श्री सावट सूनुग्गुज्जॆर प्रतिहारान्वय ...... स्तथैवैतत्प्रतयासन्न श्री गुज्जॆर वाहित समस्त क्षैत्र समेतश्च )
शिलालेख of Pratihar
ReplyDeleteप्रतिहार क्षत्रिय राजवंश का गुर्जर देश (वर्तमान गुजरात व राजस्थान का भाग) पर राज्य होने के कारण उन्हें इतिहास में गुर्जर नरेश संबोधित किया गया| इसी संबोधन को लेकर कुछ गुर्जर भाइयों को भ्रम हुआ कि प्रतिहार क्षत्रियों की उत्पत्ति गुर्जरों से हुई है और वे इसका जोर-शोर से प्रचार करने में लगे है, जबकि खुद प्रतिहार सम्राटों ने सदियों पहले लिखवाये शिलालेखों ने अपने आपको क्षत्रिय लिखवाया है| इस सम्बन्ध में इतिहास देवीसिंह मंडावा ने अपनी पुस्तक “प्रतिहारों का मूल इतिहास” में उनकी उत्पत्ति से सम्बन्धित लिखा है-
इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों के अनुसार प्रतिहारों में मण्डोर (राजस्थान) के प्रतिहारों का पहला राजघराना है जिसका शिलालेखों से वर्णन मिलता है। मण्डोर के प्रतिहारों के कई शिलालेख मिले हैं जिनमें से तीन शिलालेखों में पड़िहारों की उत्पति और वंश क्रम का वर्णन प्राप्त है। उनका वर्णन इस प्रकार है-
वि. सं. 894 चैत्र सुदि 5 ईसवी 837 का शिलालेख जोधपुर शहर पनाह की दीवार पर लगा हुआ है। यह शिलालेख पहले मण्डोर स्थित भगवान विष्णु के किसी मन्दिर में था। यह शिलालेख मण्डोर के शासक बाउक पड़िहार का है।
वि. सं. 918 चैत्र सुदि 2 ईस्वी के दोनों ही घटियाला के शिलालेख हैं एक संस्कृत में लिखित है तथा दूसरा उसी भाषा का अनुवाद है। ये दोनों शिलालेख मण्डोर के पड़िहार के है।1 इन तीनों ही शिलालेखों में रघुकुल तिलक श्री रामचन्द्र के भाई लक्ष्मण से इस प्रतिहारों कुल की उत्पत्ति होना वर्णित किया है। सम्बन्धित पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं। बाउक पड़िहार का जोधपुर का अभिलेख
स्वभ्रात्त्रा रामभद्रस्य प्रतिहार कृतं यतः, श्री प्रतिहार वड्शो यमतक्ष्चोन्नति माप्नुयात।3,4।
अर्थात्-अपने भाई के रामभद्र ने प्रतिहारी का कार्य किया। इससे यह प्रतिहारों का वंश उन्नति को प्राप्त करें। घटियाला अभिलेख
रहुतिलओपडिहारो आसीसिरि लक्खणोंतिरामस्य, तेण पडिहारवन्सो समुणईएन्थसम्पती।
अर्थात्-रघुकुल तिलक लक्ष्मण श्रीराम का प्रतिहार था। उससे प्रतिहार वंश सम्पति और समुन्नति को प्राप्त हुआ। इसी अभिलेख में दिया हैं कि संवत् 918 चैत्र माह में जब चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में था, शुक्ल पक्ष की द्वितीया बुधवार को श्री कक्कुक ने अपनी कीर्ति की वृद्धि करने हेतु रोहिन्सकूप ग्राम में एक बाजार बनवाया जो महाजनों, विप्रों, क्षत्रियों एवं व्यापारियों से भरा रहता था।
भोज प्रतिहार की ग्वालियर प्रशस्ति
ReplyDeleteप्रतिहारों की उत्पति के विषय में ग्वालियर में मिली हुई कन्नोज के प्रतिहार सम्राट भोज के समय की प्रशस्ति में लिखा है कि –
मन्विक्षा कुक्कुस्थ (त्स्थ) मूल पृथव: क्ष्मापाल कल्पद्रुमाः।2।।
तेषां वंशे सुजन्मा क्रमनिहतपदे धाम्नि वजैषु घोरं,
रामः पौलस्त्य हिन्श्रं (हिस्रं) क्षतविहित समित्कर्म्म चक्रे पलाशेः ।
श्लाघ्यस्तस्यानुजो सौ मधवमदमुषो मेघनादस्य संख्ये,
सौमित्रिस्तीव्रदंडः प्रतिहरण विर्धर्यः प्रतिहार आसीत् ।।3।।
तावून्शे प्रतिहार केतन भृति त्रैलोक्य रक्षा स्पदे
देवो नागभटः पुरातन मुने मूर्तिब्बमूवाभिदुत्तम ।।2
अर्थात् ‘सूर्यवंश में मनु, इक्ष्वाकु, काकुस्थ आदि राजा हुए, उनके वंश में पौलस्त्य (रावण) को मारने वाले राम हुए, जिनका प्रतिहार उनका छोटा भाई सौमित्र (लक्ष्मण) था, उसके वंश में नागभट्ट हुआ। आगे चलकर इसी प्रशस्ति में वत्सराज को इक्ष्वाकु वंश को उन्नत करने वाला कहा है। इसी प्रशस्ति के सातवें श्लोक में वत्सराज के लिये लिखा है कि उस क्षत्रिय पुगंव ने बलपूर्वक भडिकुल का साम्राज्य छीनकर इक्ष्वाकु कुल की उन्नति की।
कवि राजशेखर सम्राट भोज, महेन्द्रपाल और महीपाल के दरबार में कन्नोज में था। वह महेन्द्रपाल का गुरु भी था। उसने विद्धशाल भंजिका नाटक में अपने शिष्य महेन्द्रपाल को रघुकुल तिलक लिखा है। बाल भारत में रघुग्रामणी लिखा और बालभारत नाटक में महेन्द्रपाल के पुत्र महीपाल को रघुवंश मुतामणि लिखा है।3
रघुकुल तिलको महेन्द्रपाल: (विद्धशाल भंजिका, 1/6)
देवा यस्य महेन्द्रपालनृपतिः शिष्यो रघुग्रामणिः (बालभारत, 1/11)
तेन (महीपालदेवेन) च रघुवंश मुक्तामणिना (बालभारत)
चाटसू का बालादित्य गुहिल का वि. सं. 870 ईस्वी 813 का प्राप्त लेख है। इस अभिलेख में गुहिल वंश और उसके शासकों के वर्णनों में सुमन्त्र भट्ट की युद्ध वीरता, पराक्रम, शौर्य आदि के साथ कला प्रेमी होने की तुलना रघुवंशी काकुत्स्थ की समानता से की गई है। (रघुवंशी काकुत्स्थ भीनमाल के नागभट्ट प्रतिहार प्रथम का भतीजा था तथा उसके बाद भीनमाल का शासक हुआ।)
चौहानों के शेखावाटी के हर्षनाथ (पहाड़) के मन्दिर की वि. सं. 1030 ईस्वी 973 की विग्रहराज की प्रशस्ति में इसके पिता सिंहराज के वर्णन में लिखा है कि इस विजयी राजा ने सेनापति होने के कारण उद्धत बने हुए तोमर नायक सलवण को तब तक कैद में रखा जब तक कि सलवण को छुड़ाने के लिये पृथ्वी पर का चक्रवर्ती रघुवंशी स्वयं उसके यहाँ नहीं आया। इस रघुवंशी चक्रवर्ती का तात्पर्य कन्नोज के प्रतिहार सम्राट से हैं।
ReplyDeleteतोमरनायक सलवण सैन्याधिपत्योद्धतं
यद्धे येन नरेश्वराः प्रतिदिशं विन्ने (णार्णा) र्शिता जिष्णुना ।
कारावेश्मनि भूरयश्रुच विधृतास्तावद्धि यावद्गृहे
तन्मुक्तयर्थमुपागतो रघुकुले भू चक्रवर्ती स्वयम्।।4
ओसियां के महावीर मन्दिर का लेख जो कि वि. सं. 1013 ईस्वी 956 का है तथा संस्कृत और देवनागरी लिपि में है उसमें उल्लेख किया गया है कि-
तस्या काषत्किल प्रेम्णालक्ष्मणः प्रतिहारताम्।
ततो अभवत् पतिहार वंशो राम समुवः ।।6।।
तद्वंद्भशे सबशी वशी कृत रिपुः श्री वत्स राजोऽभवत।5
अर्थात् लक्ष्मण ने प्रेमपूर्वक उनके प्रतिहारी का कार्य किया, अनन्तर श्री राम से प्रतिहार वंश की उत्पत्ति हुई। उस प्रतिहार वंश में शत्रुओं को अपने वश में करने वाला श्री वत्सराज हुआ। जिसके द्वारा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों आदि की रक्षा की गई।
मंडौर के प्रतिहार क्षत्रिय वंश के, कन्नौज के प्रतिहार सम्राटों के, चाटसू के गहलोतों के, साम्भर के चौहान आदि के लेख प्रतिहारों को रघुवंशी सम्राट रामचन्द्र के लघुभ्राता लक्ष्णम के वंशज होना सिद्ध कर रहे हैं।
सन्दर्भ :
ज. रा. ए. सो, इस्वी-1895 पृष्ठ 517-18
आर्कियालाजिक सर्वे ऑफ़ इंडिया, एन्युअल रिपोर्ट ईस्वी सन 1903 पृष्ठ 280
राजपूताने का इतिहास, प्रथम भाग- पृष्ठ 65, ओझा
एपियाग्राफिका इन्डिका, जिल्द-2, पृष्ठ 121-122
राजस्थान के प्रमुख अभिलेख, सं. सुखवीरसिंह गहलोत पृष्ठ 122
यूँ तो प्रतिहारो की उत्पत्ति पर कई सारे मत है,किन्तु उनमे से अधिकतर कपोल कल्पनाओं के अलावा कुछ नहीं है। प्राचीन साहित्यों में प्रतिहार का अर्थ "द्वारपाल" मिलता है। अर्थात यह वंश विश्व के मुकुटमणि भारत के पश्चिमी द्वारा अथवा सीमा पर शासन करने के चलते ही प्रतिहार कहलाया।
ReplyDeleteअब प्रतिहार वंश की उत्पत्ति के बारे में जो भ्रांतियाँ है उनका निराकारण करते है। एक मान्यता यह है की ये वंश अबू पर्वत पर हुए यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न हुआ है,जो सरासर कपोल कल्पना है।हो सकता है अबू पर हुए यज्ञ में इस वंश की हाजिरी के कारण इस वंश के साथ साथ अग्निवंश की कथा रूढ़ हो गई हो। खैर अग्निवंश की मान्यता कल्पना के अलावा कुछ नहीं हो सकती और ऐसी कल्पित मान्यताये इतिहास में महत्त्व नहीं रखती।
इस वंश की उत्पत्ति के संबंध में प्राचीन साहित्य,ग्रन्थ और शिलालेख आदि क्या कहते है इसपर भी प्रकाश डालते है।
१) सोमदेव सूरी ने सन ९५९ में यशस्तिलक चम्पू में गुर्जर देश का वर्णन किया है। वह लिखता है कि न केवल प्रतिहार बल्कि चावड़ा,चालुक्य,आदि वंश भी इस देश पर राज करने के कारण गुर्जर कहलाये।
२) विद्व शाल मंजिका,सर्ग १,श्लोक ६ में राजशेखर ने कन्नौज के प्रतिहार राजा भोजदेव के पुत्र महेंद्र को रघुकुल तिलक अर्थात सूर्यवंशी क्षत्रिय बताया है।
३)कुमारपाल प्रबंध के पृष्ठ १११ पर भी गुर्जर देश का वर्णन है...
कर्णाटे,गुर्जरे लाटे सौराष्ट्रे कच्छ सैन्धवे।
उच्चाया चैव चमेयां मारवे मालवे तथा।।
४) महाराज कक्कूड का घटियाला शिलालेख भी इसे लक्ष्मण का वंश प्रमाणित करता है....अर्थात रघुवंशी
रहुतिलओ पड़ीहारो आसी सिरि लक्खणोत्रि रामस्य।
तेण पडिहार वन्सो समुणई एत्थ सम्प्तो।।
५) बाउक प्रतिहार के जोधपुर लेख से भी इनका रघुवंशी होना प्रमाणित होता है।(९ वी शताब्दी)
स्वभ्राता राम भद्रस्य प्रतिहार्य कृतं सतः।
श्री प्रतिहारवड शोयमत श्रोन्नतिमाप्युयात।
इस शिलालेख के अनुसार इस वंश का शासनकाल गुजरात में प्रकाश में आया था।
६) चीनी यात्री हुएन्त त्सांग ने गुर्जर राज्य की राजधानी पीलोमोलो,भीनमाल या बाड़मेर कहा
७) भोज प्रतिहार की ग्वालियर प्रशस्ति
ReplyDeleteमन्विक्षा कुक्कुस्थ(त्स्थ) मूल पृथवः क्ष्मापल कल्पद्रुमाः।
तेषां वंशे सुजन्मा क्रमनिहतपदे धाम्नि वज्रैशु घोरं,
राम: पौलस्त्य हिन्श्रं क्षतविहित समित्कर्म्म चक्रें पलाशे:।
श्लाध्यास्त्स्यानुजो सौ मधवमदमुषो मेघनादस्य संख्ये,
सौमित्रिस्तिव्रदंड: प्रतिहरण विर्धर्य: प्रतिहार आसी।
तवुन्शे प्रतिहार केतन भृति त्रैलौक्य रक्षा स्पदे
देवो नागभट: पुरातन मुने मुर्तिर्ब्बमूवाभदुतम।
अर्थात-सुर्यवंश में मनु,इश्वाकू,कक्कुस्थ आदि राजा हुए,उनके वंश में पौलस्त्य(रावण) को मारने वाले राम हुए,जिनका प्रतिहार उनका छोटा भाई सौमित्र(सुमित्रा नंदन लक्ष्मण) था,उसके वंश में नागभट हुआ। इसी प्रशस्ति के सातवे श्लोक में वत्सराज के लिए लिखा है क़ि उस क्षत्रिय पुंगव(विद्वान्) ने बलपूर्वक भड़ीकुल का साम्राज्य छिनकर इश्वाकू कुल की उन्नति की।
८) देवो यस्य महेन्द्रपालनृपति: शिष्यों रघुग्रामणी:(बालभारत,१/११)
तेन(महिपालदेवेन)च रघुवंश
मुक्तामणिना(बालभारत)
बालभारत में भी महिपालदेव को रघुवंशी कहा है।
९)ओसिया के महावीर मंदिर का लेख जो विक्रम संवत १०१३(ईस्वी ९५६) का है तथा संस्कृत और देवनागरी लिपि में है,उसमे उल्लेख किया गया है कि-
तस्या कार्षात्कल प्रेम्णालक्ष्मण: प्रतिहारताम ततो अभवत प्रतिहार वंशो राम समुव:।।६।।
तदुंदभशे सबशी वशीकृत रिपु: श्री वत्स राजोडsभवत।
अर्थात लक्ष्मण ने प्रेमपूर्वक उनके प्रतिहारी का कार्य किया,अनन्तर श्री राम से प्रतिहार वंश की उत्पत्ति हुई। उस प्रतिहार वंश में वत्सराज हुआ।
१०) गौडेंद्रवंगपतिनिर्ज्जयदुर्व्विदग्धसदगुर्ज्जरेश्वरदिगर्ग्गलतां च यस्य।
नीत्वा भुजं विहतमालवरक्षणार्त्थ स्वामी तथान्यमपि राज्यछ(फ) लानि भुंक्ते।।
-बडोदे का दानपत्र,Indian Antiquary,Vol 12,Page 160
उक्त ताम्रपत्र के 'गुजरेश्वर' एद का अर्थ 'गुर्जर देश(गुजरात) का राजा' स्पष्ट है,जिसे खिंच तानकर गुर्जर जाती या वंश का राजा मानना सर्वथा असंगत है। संस्कृत साहित्य में कई ऐसे उदाहरण मिलते है।
ये लेख गुजरेश्वर,गुर्जरात्र,गुज्जुर इन संज्ञाओ का सही मायने में अर्थ कर इसे जाती सूचक नहीं स्थान सूचक सिद्ध करता है जिससे भगवान्लाल इन्द्रजी,देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर,जैक्सन तथा अन्य सभी विद्वानों के मतों को खारिज करता है जो इस सज्ञा के उपयोग से प्रतिहारो को गुर्जर मानते है।
११) कुशनवंशी राजा कनिष्क के समय में गुर्जरों का भारतवर्ष में आना प्रमाणशून्य बात है,जिसे स्वयं डॉ.भगवानलाल इन्द्रजी ने स्वीकार किया है,और गुप्तवंशियों के समय में गुजरो को राजपूताना,गुजरात और मालवे में जागीर मिलने के विषय में कोई प्रमाण नहीं दिया है। न तो गुप्त राजाओं के लेखो और भडौच से मिले दानपत्रों में इसका कही उल्लेख है।
१२)३६ राजवंशो की किसी भी सूची में इस वंश के साथ "गुर्जर" एद का प्रयोग नहीं किया गया है। यह तथ्य भी गुर्जर एद को स्थानसूचक सिद्धकर सम्बंधित एद का कोइ विशेष महत्व नही दर्शाता।
१३)ब्राह्मण उत्पत्ति के विषय में इस वंश के साथ द्विज,विप्र यह दो संज्ञाए प्रयुक्त की गई है,तो द्विज का अर्थ ब्राह्मण न होकर द्विजातिय(जनेउ) संस्कार से है न की ब्राह्मण से। ठीक इसी तरह विप्र का अर्थ भी विद्वान पंडित अर्थात "जिसने विद्वत्ता में पांडित्य हासिल किया हो" ही है।
१४) कुशनवंशी राजा कनिष्क के समय में गुर्जरों का भारतवर्ष में आना प्रमाणशून्य बात है,जिसे स्वयं डॉ.भगवानलाल इन्द्रजी ने स्वीकार किया है,और गुप्तवंशियों के समय में गुजरो को राजपूताना,गुजरात और मालवे में जागीर मिलने के विषय में कोई प्रमाण नहीं दिया है। न तो गुप्त राजाओं के लेखो और भडौच से मिले दानपत्रों में इसका कही उल्लेख है।
उपरोक्त सभी प्रमाणों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है की,प्रतिहार वंश निस्संदेह भारतीय मूल का है तथा शुद्ध क्षत्रिय राजपूत वंश है।
---प्रतिहार राजपूतो की वर्तमान स्थिति---
ReplyDeleteभले ही यह विशाल प्रतिहार राजपूत साम्राज्य बाद में खण्डित हो गया हो लेकिन इस वंश के वंशज राजपूत आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैँ।
उत्तरी गुजरात और दक्षिणी राजस्थान में भीनमाल के पास जहाँ प्रतिहार वंश की शुरुआत हुई, आज भी वहॉ प्रतिहार राजपूत पड़िहार आदि नामो से अच्छी संख्या में मिलते हैँ।
प्रतिहारों की द्वितीय राजधानी मारवाड़ में मंडोर रही। जहाँ आज भी प्रतिहार राजपूतो की इन्दा शाखा बड़ी संख्या में मिलती है। राठोड़ो के मारवाड़ आगमन से पहले इस क्षेत्र पर प्रतिहारों की इसी शाखा का शासन था जिनसे राठोड़ो ने जीत कर जोधपुर को अपनी राजधानी बनाया। 17वीं सदी में भी जब कुछ समय के लिये मुगलो से लड़ते हुए राठोड़ो को जोधपुर छोड़ना पड़ गया था तो स्थानीय इन्दा प्रतिहार राजपूतो ने अपनी पुरातन राजधानी मंडोर पर कब्जा कर लिया था।
इसके अलावा प्रतिहारों की अन्य राजधानी ग्वालियर और कन्नौज के बीच में प्रतिहार राजपूत परिहार के नाम से बड़ी संख्या में मिलते हैँ।
बुन्देल खंड में भी परिहारों की अच्छी संख्या है। यहाँ परिहारों का एक राज्य नागौद भी है जो मिहिरभोज के सीधे वंशज हैँ।
प्रतिहारों की एक शाखा राघवो का राज्य वर्तमान में उत्तर राजस्थान के अलवर, सीकर, दौसा में था जिन्हें कछवाहों ने हराया। आज भी इस क्षेत्र में राघवो की खडाड शाखा के राजपूत अच्छी संख्या में हैँ। इन्ही की एक शाखा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, अलीगढ़, रोहिलखण्ड और दक्षिणी हरयाणा के गुडगाँव आदि क्षेत्र में बहुसंख्या में है। एक और शाखा मढाढ के नाम से उत्तर हरयाणा में मिलती है। व
उत्तर प्रदेश में सरयूपारीण क्षेत्र में भी प्रतिहार राजपूतो की विशाल कलहंस शाखा मिलती है। इनके अलावा संपूर्ण मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तरी महाराष्ट्र आदि में(जहाँ जहाँ प्रतिहार साम्राज्य फैला था) अच्छी संख्या में प्रतिहार/परिहार राजपूत मिलते हैँ
हुकम, ,,,,,, राठौरो ने मण्डोर को जीता नही था बल्कि इन्दा प्रतिहारो द्वारा दहेज मे दिया गया था, ,,,"" इन्दा रो उपकार कम धज किजै मत चॅवरी चढ्यो चुंडा दियो दहेज मे मण्डोर ""
Deletegurjar pratihar thay aur rahenge
ReplyDeletehme btane ki jarurat nhi h in bakwas bato se koi furk nhi pdega
ReplyDeleteJeetu.thakur.jeetu.thakur.3032.
Deleteगुर्जर हो या राजपूत हमारे इतिहास को तोडा मरोडा गया है
Deletehttps://youtu.be/5T4h9j0_tzQ
ReplyDelete😆😆😆😆😆😆उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत (एक राजपूत है) गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा लगवाई। लेकिन राजपूतो का नाम नहीं है
अब राजपूत कहेंगे की त्रिवेन्द्र सिंह रावत(उत्तराखंड के मुख्यमंत्री) को कुछ नहीं पता है और न ही इतिहासकारो को कुछ पता है और इतिहास के सारे शिलालेख और अभिलेख और पुराने सबूत सब गलत है जो खुद राजाओ ने अपने बारे मे लिखे है
गुर्जर-प्रतिहार वंश, जिसे प्रतिहार साम्राज्य के रूप में भी जाना जाता है, एक भारतीय शक्ति थी, जिसने 7 वीं से 12 वीं शताब्दी के मध्य तक उत्तरी भारत पर बहुत शासन किया था। शासक गुर्जर जाति के सदस्य थे जिसमे तोंवर(तंवर,तोंगड़)चौहान/चंदेला/चालुक्य/चपराना(राना)
/चावड़ा/परमार(पवार)सोलंकी/गुहिलोत/खटाना/रावल और भारत को 500 साल बाहरी आक्रमणकारियों से बचाया
अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में लिखी जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के बारे में लिखता है कि गुर्जर सम्राट की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है।
अरबी लेखक अलबरूनी ने लिखा है कि खलीफा हास के सेनापति ने कई प्रदेशों की विजय कर ली थी, लेकिन वे उज्जैन के गुर्जरों पर विजय प्राप्त नहीं कर पाए और सिंधके गवर्नरजुनैद के उत्तराधिकारी निर्भय शासक र्सिद्ध हुए जिनके शासन काल में गुर्जरों के कारण अरबो को कई मिले। जीता हुआ भाग भाग रहा है
सुलेमान नामक अरब यात्री ने गुर्जरों के बारे में साफ-साफ लिखा है कि गुर्जर इस्लाम के सबसे बड़े शत्रु है और
जोधपुर अभिलेखों में लिखा हुआ है कि दक्षिणी राजपूताना का चाहमान वंश गुर्जरों के अधीन था
कहला अभिलेख में लिखा हुआ है की कलचुरी वंश गुर्जरों के अधीन था चाटसू अभिलेख में लिखा हुआ है की गूहिल वंश जोकि महाराणा प्रताप का मूल वंस है वह गुर्जरों के अधीन था
पिहोवा अभिलेख में लिखा हुआ है कि हरियाणा का शासन गुर्जरों के अधीन था खुमान रासो के अनुसार राजा खुमान गुर्जरों के अधीन था
मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक था
गुर्जर हिंदू धर्म के अनुयायी थे। गुर्जर की कुछ संतान को बाद में राजपूतों के रूप में जाना जाने लगा। उन्होंने पहले उज्जैन और बाद में कन्नौज पर शासन किया।
महरौली को पहले मिहिरवाली के रूप में जाना जाता था, जिसका अर्थ है 'मिहिर का घर' और इसकी स्थापना गुर्जर सम्राट मिहिर भोज द्वारा की गई थी, जो गुर्जर-प्रतिहार वंश महरौली उन 7 प्राचीन शहरों में से एक है जो वर्तमान दिल्ली राज्य को बनाते हैं। लाल कोटे का किला गुर्जर राजा अनंगपाल तंवर I द्वारा 731 ईस्वी के आसपास बनाया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनंगपाल I द्वारा विस्तारित किया गया था।
Sabko pta h wo Gurjar par tm😆😆😆😆😆😆😆😆
राजपूत के इतिहासकार👇👇
गुर्जर दुनिया की एक महान जाति है। गुर्जर ऐतिहासिक काल से भारत पर शासन कर रहे थे, बाद में कुछ गुर्जर की औलाद को मध्यकाल में राजपूत कहा जाता था। राजपूत, मराठा, जाट और अहीर, क्षत्रियों के उत्तराधिकारी हैं। वे विदेशी नहीं हैं। हम सभी को छोड़कर कोई भी समुदाय क्षत्रिय नहीं कहलाता है। उस क्षत्रिय जाति को कैसे खत्म किया जा सकता है जिसमें राम और कृष्ण पैदा हुए थे। हम सभी राजपूत, मराठा, जाट और अहीर सितारे हैं, जबकि गुर्जर क्षत्रिय आकाश में चंद्रमा हैं। गुर्जर की गरिमा मानव शक्ति से परे है .. (शब्द - ठाकुर यशपाल सिंह राजपूत
गुर्जर तंवर राजाओ की औलाद से तंवर राजपूत और तोमर राजपूत बने(शब्द महेंदर सिंह राजपूत)
😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂
जिसका खुद का कोई इतिहास नही वो दुसरो का इतिहास चुराने में लगे हुए हैं..... प्रतिहार राजपूत थे और रहेंगे...🚩
Deletehttps://youtu.be/Uru9r1OSlSk
ReplyDelete"के के मुहम्मद" एक प्रसिद्ध भारतीय पुरातत्वविद् है। वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) थे, और वर्तमान में आगा खान संस्कृति ट्रस्ट में पुरातात्विक परियोजना निदेशक के रूप में सेवा दे रहे हैं।
https://youtu.be/X2wg88EYinI
👆गुर्जर प्रतिहार के प्रमाण के साथ प्रसिद्ध इतिहासकार त्रिभुवन
गुर्जर वंश के शिलालेख)👇👇👇👇
ReplyDeleteनीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है ।राजजर शिलालेख" में वर्णित "गुर्जारा प्रतिहारवन" वाक्यांश से। यह ज्ञात है कि प्रतिहार गुर्जरा वंश से संबंधित थे।
ब्रोच ताम्रपत्र 978 ई० गुर्जर कबीला(जाति)
का सप्त सेंधव अभिलेख हैं
पाल वंशी,राष्ट्रकूट या अरब यात्रियों के रिकॉर्ड ने प्रतिहार शब्द इस्तेमाल नहीं किया बल्कि गुर्जरेश्वर ,गुर्जरराज,आदि गुरजरों परिवारों की पहचान करते हैं।
बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से हुआ है।
राजोरगढ़ (अलवर जिला) के मथनदेव के अभिलेख (959 ईस्वी ) में स्पष्ट किया गया है की प्रतिहार वंशी गुर्जर जाती के लोग थे
नागबट्टा के चाचा दड्डा प्रथम को शिलालेख में "गुर्जरा-नृपाती-वाम्सा" कहा जाता है, यह साबित करता है कि नागभट्ट एक गुर्जरा था, क्योंकि वाम्सा स्पष्ट रूप से परिवार का तात्पर्य है।
महिपाला,विशाल साम्राज्य पर शासन कर रहा था, को पंप द्वारा "गुर्जरा राजा" कहा जाता है। एक सम्राट को केवल एक छोटे से क्षेत्र के राजा क्यों कहा जाना चाहिए, यह अधिक समझ में आता है कि इस शब्द ने अपने परिवार को दर्शाया।
भडोच के गुर्जरों के विषय दक्षिणी गुजरात से प्राप्त नौ तत्कालीन ताम्रपत्रो में उन्होंने खुद को गुर्जर नृपति वंश का होना बताया
प्राचीन भारत के की प्रख्यात पुस्तक ब्रह्मस्फुत सिद्धांत के अनुसार 628 ई. में श्री चप
(चपराना/चावडा) वंश का व्याघ्रमुख नामक गुर्जर राजा भीनमाल में शासन कर रहा था
9वीं शताब्दी में परमार जगददेव के जैनद शिलालेख में कहा है कि गुर्जरा योद्धाओं की पत्नियों ने अपनी सैन्य जीत के
परिणामस्वरूप अर्बुडा की गुफाओं में आँसू बहाए।
। मार्कंदई पुराण,स्कंध पुराण में पंच द्रविडो में गुर्जरो जनजाति का उल्लेख है।
अरबी लेखक अलबरूनी ने लिखा है कि खलीफा हासम के सेनापति ने अनेक प्रदेशों की विजय कर ली थी परंतु वे उज्जैन के गुर्जरों पर विजय प्राप्त नहीं कर सका
सुलेमान नामक अरब यात्री ने गुर्जरों के बारे में साफ-साफ लिखा है कि गुर्जर इस्लाम के सबसे बड़े शत्रु है
जोधपुर अभिलेख में लिखा हुआ है कि दक्षिणी राजस्थान का चाहमान वंश गुर्जरों के अधीन था
कहला अभिलेख में लिखा हुआ है की कलचुरी वंश गुर्जरों के अधीन था
चाटसू अभिलेख में लिखा हुआ है की गूहिल वंश जोकि महाराणा प्रताप का मूल वंस है वह गुर्जरों के अधीन था
पिहोवा अभिलेख में लिखा हुआ है कि हरियाणा का शासन गुर्जरों के अधीन था
खुमाण रासो के अनुसार राजा खुमाण गुर्जरों के अधीन था
भिलमलक्काचार्यका ब्रह्मा स्फूट सिद्धांत
उद्योतनसुरी की कुवलयमाला कश्मीरी कवि कल्हण की राजतरंगिणी
प्रबन्ध कोष ग्रन्थ व खुमान रासो ग्रंथ के अनुसार गुर्जरों ने मुसलमानों को हराया और खुमान रासो
राम गया अभिलेख
बकुला अभिलेख
दौलतपुर अभिलेख
गुनेरिया अभिलेख
इटखोरी अभिलेख
पहाड़पुर अभिलेख
घटियाला अभिलेख
हड्डल अभिलेख
रखेत्र अभिलेख
राधनपुर और वनी डिंडोरी अभिलेख
राजशेखर का कर्पूर मंजरी ग्रंथ, काव्यमीमांसा ग्रंथ ,विध्दशालभंजिका ग्रंथ
कवि पंपा ,
जैन आचार्य जिनसेन की हरिवंश पुराण आदि के द्वारा दिया गया
लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था।
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तनवार गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
लेखक अब्दुल मलिक,जनरल सर कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर जाती
(गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तनवार था
गुर्जर साम्राज्य अनेक भागों में विभक्त हो गया ।इनमें से मुख्य भागों के नाम थे:
शाकम्भरी (सांभर) के चाहमान (चौहान)
दिल्ली के तनवार गुर्जर
मंडोर के गुर्जर प्रतिहार
बुन्देलखण्ड के कलचुरि गुर्जर
मालवा के परमार गुर्जर
मेदपाट (मेवाड़) के गुहिल गुर्जर
महोवा-कालिजंर के चन्देल गुर्जर
सौराष्ट्र के चालुक्य गुर्जर
बराक ओबामा भी गुजर है😂😂
Deleteअरे भाई आप तो इतिहास को भी झूठा करने पर तुले होए है ।अगर मिहिर राजपूत था तो उसने अपने नाम के साथ राजपूत क्यूं नहीं लिखा अरे चूतियो हद है कमिनेपन की । राजाओं की चापलूसी कर कर के इतिहास बदलना चाहा आपने पर कम्यम नहीं हो सके । आप ऐसा बताओ कहीं मिहिर के नाम के साथ राजपूत लिखा है? नहीं ना । राजपूत का नामोनिशान तक नहीं इतिहास है ।शर्म करो सालो किस किस को आप अपना बाप बनाओगे ? जाटों अहिरो के इतिहास भी चुराने में लगे हो तुम ।
Deleteइस महान जाति ने मूल रूप से अपना नाम 'गुरुतार' शब्द से लिया है जैसे कि पं। छोट लाल शर्मा (प्रसिद्ध पुरातात्विक और इतिहासकार)। वाल्मीकि द्वारा रामायण में 'महाराजा दशरथ' को 'गुरुदार' कहा जाता था। इसका मतलब है "एक बहुत उच्च श्रेणी राजा" .जिसे गुरुजन में बदल दिया गया था और बाद में गुर्जर में बदल दिया गया था। गुर्जर भारत में सबसे प्राचीन जातियों में से एक हैं
ReplyDeleteबनारस के एक प्रसिद्ध संस्कृत पंडित पंडित वासुदेव प्रसाद ने प्राचीन संस्कृत साहित्य के माध्यम से साबित किया है कि शब्द "गुज्जर" प्राचीन के नामों के बाद बोली जाने वाली थी, क्षत्रिय अन्य संस्कृत विद्वान राधाकांत का मानना है कि गुज्जर शब्द क्षत्रिय के लिए थे। वैज्ञानिक साक्ष्य ने साबित कर दिया है कि गुज्जर आर्यों से संबंधित है
राणा अली हुसैन लिखते हैं कि गुज्जर शब्द गुर्जर या गरजर शब्द से लिया गया है, जिसका प्रयोग रामायण में महर्षि वाल्मीकि द्वारा किया गया है। वाल्मीकि ने रामायण में लिखा है, "गतो दशरत स्वर्ग्यो गार्तारो" - जिसका अर्थ है राजा दशरत जो हमारे बीच क्षत्रिय थे, स्वर्ग के लिए चले गए
चीनी यात्री हेन सांग ने भीनमाल का बड़े अच्छे रूप में वर्णन किया है। उसने लिखा है कि “भीनमाल का 20 वर्षीय नवयुवक क्षत्रिय राजा अपने साहस और बुद्धि के लिए प्रसिद्ध है और वह बौद्ध-धर्म का अनुयायी है। यहां के चापवंशी गुर्जर बड़े शक्तिशाली और धनधान्यपूर्ण देश के स्वामी हैं।”
ReplyDeleteहेन सांग (629-645 ई.) के अनुसार सातवी शताब्दी में दक्षिणी गुजरात में भड़ोच राज्य भी विधमान था| भड़ोच राज्य के शासको के कई ताम्र पत्र प्राप्त हुए हैं, जिनसे इनकी वंशावली और इतिहास का पता चलता हैं| इन शासको ने स्वयं को गुर्जर राजाओ के वंश का माना हैं| मंडोर के प्रतिहारो और उनके समकालीन भड़ोच के गुर्जरों की वंशावली के तुलान्तामक अध्ययन से पता चलता हैं कि इन वंशो के नामो में कुछ समानताए हैं| भड़ोच के ‘गुर्जर नृपति वंश’ के संस्थापक का नाम तथा मंडोर के प्रतिहार वंश के संस्थापक हरिचन्द्र के चौथे पुत्र का नाम एक ही हैं- दद्द| कुछ इतिहासकार इन दोनों के एक ही व्यक्ति मानते हैं| दोनों वंशो के शासको के नामो में एक और समानता ‘भट’ प्रत्यय की हैं| भट का अर्थ योद्धा होता हैं| मंडोर के प्रतिहारो में भोग भट, नर भट और नाग भट हैं तो भड़ोच के गुर्जर वंश में जय भट नाम के ही कई शासक हैं| दोनों वंशो के शासको के नामो की समानताओ के आधार पर इतिहासकार भड़ोच के गुर्जर वंश को मंडोर के प्रतिहारो की शाखा मानते हैं| किन्तु इसमें आपत्ति यह हैं कि भड़ोच के गुर्जर अपने अभिलेखों में महाभारत के पात्र ‘भारत प्रसिद्ध कर्ण’ को अपना पूर्वज मानते हैं नाकि मंडोर के प्रतिहारो की तरह रामायण के पात्र लक्ष्मण को|
पृथ्वीराज विजय एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है। वर्ष 1191-93 ई. के बीच इस ग्रंथ की रचना कश्मीरी पण्डित 'जयानक' ने की। इस ग्रंथ के माध्यम से पृथ्वीराज तृतीय के विषय में जानकारी मिलती है।और पृथ्वीराज चौहान को गुर्जर लिखा है
ReplyDeleteदसवीं शताब्दी में देवनारायण भगवान चौहान वंश के गुर्जर थे और महाराणा प्रताप भी लड़ाई से पहले देवनारायण की पूजा करते थे और आज भी गुर्जर के भगवान है और पुरे राजस्थान मे गुर्जर उनकी पूजा करते है
और देव नारायण भगवन की वजह से पुष्कर मे गुर्जर घाट बना और पहले पुष्कर मे सिर्फ गुर्जरो को ही पूजा करने का अधिकार था
और देव नारायण भगवान के वंश मे ही पृथ्वीराज चौहान हुए
जय देवनारायण भगवान🙏
11 वीं शताब्दी के कवि धनपाल जैन की तिलकमंजरी पुस्तक में भोज परमार गुर्जर राजवंश के प्रमाण
ReplyDeleteवासिष्ठस्म कृतस्मयो वरशतैरस्त्यग्निकुण्डोद्भवो ।भूपालः परमार इत्यभिधया ख्यातो महीमण्डले ॥अद्याप्युद्गतहर्षगद्गदगिरो गायन्ति यस्यार्बुदे ।विश्वामित्रजयोज्झितस्य भुजयोर्विस्फूजितं गुर्जराः ॥३
(हिंदी में अनुवाद)
राजा भोज का वश पर वसिष्ठ की स्त्री अरुन्धती रोने लगी ।उसकी ऐसी अवस्था को देख मुनि को क्रोध चढ़ गया और उसने अथर्व मंत्र पढ़ कर आहुति के द्वारा अपने अग्निकुंड से एक वीर उत्पन्न किया ।वह वीर शत्रुओं का नाशकर वसिष्ठ की गाय को वापिस ले आया ।इससे प्रसन्न होकर मुनि ने उसका नाम परमार रखा और उसे एक छत्र देकर राजा बना दिया ।धनपाल ' नामक कवि ने वि० सं० १०७० ( ई० स० १०१३ ) के करीब राजा भोज की आज्ञा से तिलकमञ्जरी नामक गद्य काव्य लिखा था ।उसमें लिखा है : आबू पर्वत पर के गुर्जर लोग , वसिष्ठ के अग्निकुंड से उत्पन्न हुए और विश्वामित्र को जीतनेवाले , परमार नामक नरेश के प्रताप को अब तक भी स्मरण किया करते हैं ।गिरवर ( सिरोही राज्य ) के पाट नारायण के मन्दिर के वि० सं० १३४४ ( ई० सं० १९८७ ) के लेख में इस वंश के मूल पुरुष का नाम उत्पन्न होने के स्थान पर वसिष्ठ की नन्दिनी गाय के हुकार से पल्हव , शक , यवन , आदि म्लेच्छों काउत्पन्न होना लिखा है : तस्या हुंभारवोत्कृष्टाः पल्हवाः शतशो नृप ॥१८ ॥भूय एवासृजद्घोराच्छकाम्यवनमिश्रितान्
Gushavar (master of the enemy). Prakrit form of this word is Gurshar as Ishar Isar, Sanskrit with Prakrit is a vast language, so the people change the sound of a pesonal name or caste name as per deeds or misdeeds of the person, when the Gurshar repulsed or defeated the invaders in most ancient times, the people changed the word Gurshar with a strong sense into Guijar (destroyer of the enemy) oftenly S or Sh are changed into J. As far as the word Gujjar goes in its present form, it is found in Panch Tantra. It was translated into Pehalvi by Borozoya, the Minister of Khust I, in 4th century AD. An English author of the book stories told that world over described Panch Tantra was written in 200 BC. Almasoodi writes that the book was written in the time of first successor of Poras who fought against Alexander. Almasoodi takes the bock upto 300 BC In this old book, there is a mention of Gujjar Desa. Date of Guijar Desa prior to Panch Tantra and date of Guijars prior to Gujar Desa lead us
ReplyDelete1192 ई। में पृथ्वी को भी पराजित करने के बाद गुरजेश्वर का मुकुट लिया। कन्नौज (193 ईस्वी), अजमेर (1195) अयोध्या, बिहार (1194), बिहार (194), ग्वालियर (96), अनहिलवाड़ा (197), चंदेला (1201 ई।) पर भी मुस्लिमों ने कब्जा कर लिया। गुर्जर मंडल उसके बाद समाप्त हो गया, यह इतिहास में 1400 ईस्वी के बाद एक नया नाम था। 1398 ई। में लैंग के आमिर तैमूर द्वारा हिंदू योद्धाओं को सबसे पहले देखा गया और उन्हें "राजपूत" के रूप में संबोधित किया गया। राजपूत का अर्थ राजपूतरा या सन ऑफ़किंग नहीं है। राजपूत का अर्थ था राज्य-पुत्र या राज्य का पुत्र, जो आक्रमणकारियों से अपने राज्य वापस पाने के लिए संगठित थे। राजपूत संघ का गठन 13 वीं शताब्दी के दौरान (मारवाड़ क्षेत्र में) मुस्लिम आक्रमणकारियों से लड़ने के लिए किया गया था। इसका गठन प्रसिद्ध गुर्जर वंशों यानी प्रतिहारों, परमार, चालुक्यों, चौहानों, ग्वालों, गद्दारों, चंदेलों, तोमरों, चावड़ों, धामों आदि ने किया था। जैसलमेर और देवगिरि के यादवों और कुछ चुनिंदा योद्धा जाट जनजातियाँ जैसे दहिया और खोखर।
ReplyDeleteकहीं भी राणा या राव की उपाधि के साथ राजपूत का उल्लेख नहीं है। केवल प्रताप को राणा प्रताप के रूप में लिखा गया है, लेकिन राणा प्रताप एक राजपूत नहीं थे, वे गुहिलोट परिवार से संबंधित एक शुद्ध गुर्जर थे। गोहिलोट्स मैट्रिक के शूट थे। मैमैत्री और गोहिलोट निस्संदेह गुर्जर थे। इतिहासकारों को पता है कि 1300 ईस्वी में चित्तौड़ के शाही गोहिलोट परिवार के विनाश के बाद, सिसोद के गोहिल इतिहास में उभरे और हमीर ने बलपूर्वक चित्तौड़ को वापस ले लिया, विदेशी मुसलमानों के अपने नए अधिकारी प्रभारी हमीर की लाइन को बाद में सिसोदिया कहा जाने लगा। क्योंकि हमीर सिसोद से आया था। उसकी रेखा में राणा प्रताप की मृत्यु 1596 ईस्वी में हुई थी जो अंतिम गुर्जर था। उसकी मृत्यु के बाद परिवार को राजपूतों के साथ वैवाहिक संबंधों में जोड़ा गया था और अब परिवार को राजपूत के रूप में जाना जाता है। (इतिहास में गुर्जर और उनका योगदान, मीनाक्षी प्रकाशन, अजमेर राज द्वारा पृष्ठ 35)। 131
took the crown of Gurjeshwar after Prithvi was also defeated in 1195 AD. Kannauj (193 AD), Ajmer (1195) Ayudhya, Bihar (1194), Bihar (194), Gwalior (96), Anhilwada (197), Chandella (1201 AD) were also captured by muslims. The Gurjar Mandal finished after that, it appeared in history wth a new name only after 1400 AD. The Hindu warriors were first, noticed and addressed as "Rajputs" by Aamir Timur of Lang in 1398 AD Note: Rajput, does not mean Rajputra or Son ofKing. Rajput meant Rajya-Putra or son of the Kingdom, who were organised to get back their kingdoms from the invaders. The Rajput Sangh was formed to fight out the muslim invaders somewhere during 13th century (in Marwar region) It was formed by famous Gurjar clans i.e. Pratihars, Parmars, Chalukyas, Chauhans, Guhilots, Gehadwals, Chandelas, Tomars, Chawdas, Dhamas etc. alongwith Yadavas of Jaisalmer and Devagiri plus a few selected warrior Jat tribes like Dahiya and Khokhars .
ReplyDeleteThere is no mention ofa Rajput with a title of Rana or Rao. Only Partap is written as Rana Pratap, but Rana Partap was not a Rajputra, he was a pure Gurjar belonging to Guhilot family. Gohilots were of-shoot of maitrikas. The Maimatrias and Gohilots were undoubtedly Gurjars. Historians know that after the destruction of the Royal Gohilot family of Chittowr in 1300 A.D., the Gohilots of Sisod emerged in History and Hamir by force took over Chittor back from its new officer-in-charge of the foreign Muslims Hamir's line was afterward called Sisodia because Hamir came from Sisod In his line Rana Pratap who died in 1596 A.D. was the last Gujar After his death the family was linked in matrimonial relations with the Rajputs and now the family is known as Rajput. (The Gurjars and their contribution in History, Page 35 by Meenakshi Parkashan, Ajmer Raj.) 131
Gurjar Itihas and proved that Gurjar was name of a Kshtriyan tribe.The Curior Pratihara Author: Sarwar Chauhan
ReplyDeleteThe theory of the origin It has been said that Rajputs were born on Mount Abu in the begining of 6th Century AD but from 500 AD to 1300 AD there was no community by the name of Rajputraor Rajput in India whereas Gurjar and Ahirs are mentioned even before Christ.I.
A Jat-Asur is mentioned in the book Mahabharat 3101 B.C.If a Kshatriya becomes Jat (illiterate) or Asur (non-believer) (as per Chachnama) his origin will remain the same However, we find a Jat king ruling at Takatpur in about 975 A.D. in Northren Sind.
.Abhirs or Ahirs are well known to history.It is universally known that Sri Krishna was brought up by Baba Nand Ahir and his wife Yeshoda (3100B.C. ) .However, we find Ahir kings ruling in Saurashtra side by side with the Gurjars.
The Agni Kul (fire born) ruling families were Gurjars as per epigraphic and Antiquary records from 500 A.D. to 1300 A.D. During this whole period, they never called themselves fire-born.They always called themselves Brahm Kashtra.Raghava (Raghu) and Surya Vansh.The groups of people are formed of old races with new names under different circumstances.Here I mean to say, the groups of ancient Kshtriyas, the Gurjars and Ahirs are older than the present groups of the Rajputs.
Therefore, the Rajputs have no concern with Agni Kul legend.It is noteworthy that there is not at all the word Rajput found anywhere in the book Prithvi Raj Raso in which the legend is recorded.
Chap Dynasty of Malva One of the greatest Indian Kings "
ReplyDeleteThe Mighty Yashodharman Vikramaditya" was a Gurjar Ruler of Malva or Uijain. His capital was at Mandsaur. He was from the Chap clan of Gurjars. He ruled Malva as feudatory to Gupta Kings. This Chap dynasty later served as the feudatories to Maitriks of Vallabhi The Famous poet Kalidasa was in his court. (and not in the court of Chandragupta-2.) Some scholars claim that the Vikramaditya ofKalidasa was this Yashodharman only. The name "Gujardesa" was founded by Yashodharman in 480 AD (Earlier it was Gujarat),
he was Chap by his surname as written at pillar inscription at Vasantgarh. According to thepillar inscriptions of Mandsaur and in Nalanda, He was mentioned as the founder of Gurjardesh. He took the title of Narpati Gurja CHAP GURJAR- Chaprana Gurjar& Chawda Gurjar CHAP GURJAR DYNASTY Refrence:
Origin Rise & Growth of Guriars I Author:Sarwar Chauhan
क्षत्रिय थे तो बाबर के साथ भारत को लूटने क्यों आये थे। क्षत्रिय रक्षक होता है, लुटेरा नही। यकीन नही आता तो बाबर नामा पढ़ ले भाई। सारे हिंदुओ को बाबर काफिर कहता है लेकिन गूजरो को अपना नोकर बताता है। खैर बाबर तो एक म्लेच्छ था कुछ भी कह सकता हैं। लेकिन फिर भी
ReplyDeleteगुजरो को वो काफिर नही कहता।
Kute gurjar vash tha ye
Deleteगांड़ू मा बहन तो अपने आप को कोई राजपूत कहने वाले चुधाई है मुहोमाद गौरी से लेकर मुघलों तक ,इतिहास गवाह है इसका ,और फिर अंग्रेजो से ,चूतियो आपने देश के लिए कुछ नहीं किया बस राजों के भोग लगाए 😀😀😀
DeleteChal teri mani hamne ..
DeleteTu dikha kaha likha h.
Poori babarnama m khi nhi likha.
Jhoota confidence bhot h ye baat to manni padegi
#सम्राट_मिहिरभोज_द्वारा_लिखित
ReplyDelete#मिहिरभोज_प्रतिहार_की_ग्वालियर_प्रशस्ति
********************************
प्रतिहारों की उत्पति के विषय में ग्वालियर में मिली हुई कन्नोज के प्रतिहार सम्राट भोज के समय की प्रशस्ति में लिखा है कि –
मन्विक्षा कुक्कुस्थ (त्स्थ) मूल पृथव: क्ष्मापाल कल्पद्रुमाः।2।।
तेषां वंशे सुजन्मा क्रमनिहतपदे धाम्नि वजैषु घोरं,
रामः पौलस्त्य हिन्श्रं (हिस्रं) क्षतविहित समित्कर्म्म चक्रे पलाशेः ।
श्लाघ्यस्तस्यानुजो सौ मधवमदमुषो मेघनादस्य संख्ये,
सौमित्रिस्तीव्रदंडः प्रतिहरण विर्धर्यः प्रतिहार आसीत् ।।3।।
तावून्शे प्रतिहार केतन भृति त्रैलोक्य रक्षा स्पदे
देवो नागभटः पुरातन मुने मूर्तिब्बमूवाभिदुत्तम ।।2
अर्थात् ‘सूर्यवंश में मनु, इक्ष्वाकु, काकुस्थ आदि राजा हुए, उनके वंश में पौलस्त्य (रावण) को मारने वाले राम हुए, जिनका प्रतिहार उनका छोटा भाई सौमित्र (लक्ष्मण) था, उसके वंश में नागभट्ट हुआ। आगे चलकर इसी प्रशस्ति में वत्सराज को इक्ष्वाकु वंश को उन्नत करने वाला कहा है। इसी प्रशस्ति के सातवें श्लोक में वत्सराज के लिये लिखा है कि उस क्षत्रिय पुगंव ने बलपूर्वक भडिकुल का साम्राज्य छीनकर इक्ष्वाकु कुल की उन्नति की।
Sabko Rajput Banane ka Shauk Chada Hua Hai. Are Bhai Jo Ho Us Par Hi Garv Karna Seekho.
ReplyDeleteWaise bhi Insaan Karm Karne Se Bada Banta Hai Na ki Kisi Vishes Jati Mein Paida Hone Se.
Mahabharat mein Karn ne Kaha tha--
पूछो मेरी जाति, शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से,
रवि-समाज दीपित ललाट से, और कवच-कुण्डल से।
पढो उसे जो झलक रहा है मुझमें तेज-प्रकाश,
मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास।
Samrat Mihir bhoj Rajput raja the na
ReplyDeleteKi gujjar
Gujjar log internet per galat information post karte Hain samrat Mihir bhoj Rajput the
Lekin aaj ke samay mein gujjar log samrat Mihir bhoj ko apna samrat batate Hain joki bilkul galat hai
Pratihar vansh Rajput ki shakha hai hi gujar pratihar vansh ka koi praman sapoot Nahin milta gujjar log dusron ka itihaas ke sath chhedchhad Karke apna batate Hain
Pad le bewkoof Pratihar ek tital tha jo Gurjaro ko mila tha or
DeleteChauhan,tanwar,chalukaya,chandel,parmar ext Gurjar the Shilalekha pad lo
वीर गुर्जर - प्रतिहार राजाओ के ऐतिहासिक अभिलैख प्रमाण
प्रतिहार एक उपाधि(tital) थी जो राष्ट्रकूट राजा ने गुर्जर राजा को दी थी👇👇👇👇👇👇👇
1. सज्जन ताम्रपत्र (871 ई. ) :---
अमोघ वर्ष शक सम्वत
793 ( 871 ई . ) का
सज्जन ताम्र पञ ) :---- I
इस ताम्रपत्र अभिलेख मे लिखा है। कि राष्ट्र कूट शासक दन्तिदुर्ग ने 754 ई. मे "हिरण्य - गर्भ - महादान " नामक यज्ञ किया अवांछित और खंडित दासवतारा गुफा शिलालेख का उल्लेख है कि दांतिदुर्ग ने उज्जैन में उपहार दिए थे और राजा का शिविर गुर्जरा महल उज्जैन में स्थित था (मजूमदार और दासगुप्त, भारत का एक व्यापक इतिहास)।
अमोगवरास (साका संवत 793 = एडी 871) के संजन तांबे की प्लेट शिलालेख दांतिदुर्ग को उज्जैनिस दरवाजे के रखवाले (एल, वॉल्यूम XVIII, पृष्ठ 243,11.6-7)तो इस शुभ अवसर पर गुर्जर आदि राजाओ ने यज्ञ की सफलता पूर्वक सचालन हेतु यज्ञ रक्षक ( प्रतिहार ) का कार्य किया । ( अर्थात यज्ञ रक्षक प्रतिहारी का कार्य किया )और प्रतिहार नाम दिया
( " हिरणय गर्भ राज्यनै रुज्जयन्यां यदसितमा प्रतिहारी कृतं येन गुर्जरेशादि राजकम " )
2. सिरूर शिलालेख ( :----
यह शिलालेख गोविन्द - III के गुर्जर नागभट्ट - II एवम राजा चन्द्र कै साथ हुए युद्ध के सम्बन्ध मे यह अभिलेख है । जिसमे " गुर्जरान " गुर्जर राजाओ, गुर्जर सेनिको , गुर्जर जाति एवम गुर्जर राज्य सभी का बोध कराता है।
( केरल-मालव-सोराषट्रानस गुर्जरान )
{ सन्दर्भ :- उज्जयिनी का इतिहास एवम पुरातत्व - दीक्षित - पृष्ठ - 181 }
3. बडोदा ताम्रपत्र ( 811 ई.) :---
कर्क राज का बडोदा ताम्रपत्र शक स. 734 ( 811-812 ई ) इस अभिलेख मे गुर्जरैश्वर नागभट्ट - II का उल्लेख है ।
( गोडेन्द्र वगपति निर्जय दुविदग्ध सद गुर्जरैश्वर -दि गर्गलताम च यस्या नीतवा भुजं विहत मालव रक्षणार्थ स्वामी तथान्य राज्यदद फलानी भुडक्तै" )
{ सन्दर्भ :- इडियन एन्टी. भाग -12 पृष्ठ - 156-160 }
4. बगुम्रा-ताम्रपत्र ( 915 ई. )
इन्द्र - तृतीय का बगुम्रा -ताम्र पत्र शक सं. 837 ( 915 ई )
का अभिलेख मे गुर्जर सम्राट महेन्द्र पाल या महिपाल को दहाड़ता गुर्जर ( गर्जदै गुर्जर - गरजने वाला गुर्जर ) कहा गया है ।
( धारासारिणिसेन्द्र चापवलयै यस्येत्थमब्दागमे । गर्जदै - गुर्जर -सगर-व्यतिकरे जीणो जनारांसति।)
{ सन्दर्भ :-
1. बम्बई गजेटियर, भाग -1 पृष्ट - 128, नोट -4
2. उज्जयिनी इतिहास तथा पुरातत्व, दीक्षित - पृष्ठ - 184 -185 }
5. खुजराहो अभिलेख ( 954 ई. ) :----
चन्दैल धगं का वि. स . 1011 ( 954 ई ) का खुजराहो शिलालैख सख्या -2 मे चन्देल राजा को मरु-सज्वरो गुर्जराणाम के विशेषण से सम्बोधित किया है ।
( मरू-सज्वरो गुर्जराणाम )
{ एपिग्राफिक इडिका - 1 पृष्ठ -112- 116 }
6. गोहखा अभिलेख :--
चैदिराजा कर्ण का गोहखा अभिलैख मे गुर्जर राजा को चेदीराजालक्ष्मणराजदैव दवारा पराजित करने का उल्लेख किया गया हे ।
( बगांल भगं निपुण परिभूत पाण्डयो लाटेरा लुण्ठन पटुज्जिर्जत गुज्जॆरेन्द्र ।
काश्मीर वीर मुकुटाचित पादपीठ स्तेषु क्रमाद जनि लक्ष्मणराजदैव )
{ सन्दर्भ :- 1. एपिग्राफिक इडिका - 11 - पृष्ठ - 142
2. कार्पस जिल्द - 4 पृष्ठ -256, श्लोक - 8 }
7. बादाल स्तम्भ लैख:--
नारायण पाल का बादाल सत्म्भ लैख के श्लोक संख्या 13 के अनुसार गुर्जर राजा राम भद्रदैव ( गुर्जर - नाथ) के समय दैवपाल ने गुर्जर- प्रतिहार के कुछ प्रदेश पर अधिकार कर लिया था ।
( उत्कीलितोत्कल कुलम हत हूण गर्व खव्वीकृत द्रविड गुर्जर-नाथ दप्पर्म )
{ सन्दर्भ :--एपिग्राफिक इडिका - 2 पृष्ठ - 160 - श्लोक - 13 }
8. राजोरगढ अभिलेख ( 960 ई. ) :--
गुजॆर राजा मथन दैव का वि. स. ( 960 ई ) का राजोर गढ ( राज्यपुर ) अभिलेख मे महाराज सावट के पुत्र गुर्जर प्रतिहार मथनदैव को गुर्जर वंश शिरोमणी तथा समस्त जोतने योग्य भूमि गुर्जर किसानो के अधीन उल्लेखित है ।
( श्री राज्यपुराव सिथ्तो महाराजाधिराज परमैश्वर श्री मथनदैवो महाराजाधिरात श्री सावट सूनुग्गुज्जॆर प्रतिहारान्वय ...... स्तथैवैतत्प्रतयासन्न श्री गुज्जॆर वाहित समस्त क्षैत्र समेतश्च )
हाहाहा... मतलब झूट की भी hadd हो.. जय गुर्जरात्रा
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Ye midini rai rana sanga ke wansh ke rajput h.
ReplyDeleteInhe Gurjar pratihaaro se q jod diya.
Chutiya hai k
Abe Bhains chor sale Gujjar Lujjar 😂😂😂 Itihaas chor sale Dusron Ko Apna Baap Banane walon Samrat Mihir Bhoj pratihar Rajput vansh ke Raja the jakar school college mein Itihas History ko padh lena samjha kya Har Kisi Ko Apna Baap banaa lete ho 😂😂😂
ReplyDeleteGujjar Pahle Mughlon Ka Bhains churate The For Uske Bad Angrejon ka Bhains Churate The Ab Logon Ka Itihaas History Ko Chura Rahe Hai 💯💯💯😂😂😂
ReplyDeleteपरिहार ओर खंगार में करता सम्बंध हैं, इनके पूर्वज कौन है।
ReplyDeleteBahut Gyan Vardhan hua
ReplyDeleteप्रतिहार और परमारों मे क्या सम्बन्ध है
ReplyDeleteअकबर भी राजपूत था
ReplyDeleteदूसरी की औलाद हि बन ना है तो बेसे हि भेज अपनी माँ को gurjar तैयार हैँ लंड को घी पिला के आगे से पीछे से जिधर से मन हो उधर से देंगे गांड मे
ReplyDeleteparihar agra ke bah tehsil me bahut goan hsi
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ReplyDeleteJyada samjhdaro ke liye kuch btata hu.
ReplyDeleteGurjar sabd sanskrit sabd he jiska mtlb hota h "satruo ka naash krne wala". Viswas na ho to ek baar search kr le. Ab tum log ye to nhi bol skte ki gurjar jati ne to gurjar sabd hi rajputo se le liya ye bhi rajputo ka khandani tha. 😂😂😂 or viswas fir bhi na ho to gurjaro ki nasle dekh lo jaha mjbut kad kati ka sharir hi milega. Or gussa hmesa sir pr swar hi milega.
राणा नाहडसिंह जी के बारे में batou sir jo मंडोर के 151वे राजा थे जिन्होंने पुष्कर का तालाब और ब्रम्हा जी का मंदिर बनवाया था
ReplyDeleteMp me bhi kaphi tadat Parihar vansh
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