Sunday, 30 October 2016

पुण्डीर इतिहास - मंजोपरी कांड

जय श्री राम  जय क्षात्र धर्म  स्वाभिमान अमर रहे 


सूर्यकुल पुण्डीर वंश पुस्तक मे मैने गाँव स्तर पर जो एतिहासिक घटनाए हुइ थी  उनका भी वर्णन किया है  , जो  मुझे लगता है आने वाले वर्षो मे ये भी पुण्डीर इतिहास का  अंग बनेगा... 



मंजोपरी कांड --------- वर्तमान मे पुण्डीर क्षत्रियो के गाँव  " अंब्हैटा चाँद " गाँव के स्थित खेत  ( ढाक्के)  जहाँ है  वहा पहले कभी मंजोपरी नामक गाँव हुआ करता था  , जिसके  अवशेष आज भी दिखाइ देते है  , व खुदाइ के दोरान वहाँ पुराने बर्तन  , कुआ आदि एसी वस्तू मिली जो यहाँ पर पुरानी बसती या गाँव होने का संकेत देते है.  !


क्यू उजडा गांव मंजोपरी  ? 

गाँव के बडे बुजूर्ग व भाट  बताते है  अंग्रेजो के काल तक यहाँ मंजोपरी गाँव था  जहा सैनी जाती के लोग रहते  थे  , गर्मी के मौसम मे बेहट क्षेत्र के किसी गाँव के  ठाकुर ने अंब्हैटा चाँद के ठाकुर समय सिंह को  आम भिजवाए जिनहे कशयप जाती का वय्कती लेकर आ रहा था  ! वह रासते मे मंजोपरी गाँव मे रूका और अंब्हैटा चाँद गाँव का पता पूछने लगा तब वहाँ  के  चौधरी ने  पुछा  इस पेटीयो मे क्या है  ? तब ज्वाब दिया की  ठाकुर सहाब के लिए आम है  , तब उस सैनी ने उस से आम ले लिए और आमो को चुसकर वापस गुठली अंदर घुसा दी और तब उस आम लाने वाले को भेद दिया  !  कुछ देर बाद वह गाँव आया उस समय समय सिंह जी खेतो पर थे व उनके भाइ अभय सिंह घेर मे विश्राम कर रहे  थे  तो उनहोने उस कश्यप के घबराए चहरे को देखा और पुछा क्या बात है  , तब तक समय सिंह वहाँ गुदाला ( लंबा सरिया जिस से गड्ढा खोदा जाता है  ) लेकर पहुचे और उनके पुछने पर उस कश्यप ने सब कुछ सच सच बता दिया , यह बात समय सिंह जी को  सहन नही हुइ  ! समय सिंह जी बहोत बलवान और लंबे चोडे वयक्ती थे  वह  तुरंत वही गुदाला लेकर मंजोपरी गाँव चल पडे,  वहाँ वो सैनी  अपनी बैठक मे खाट पर लेटा हुआ था  , तभी  ठाकुर समय सिंह जी ने वह गुदाला उसकी छाती पर मारा और आर पार कर दिया  , गाँव के चौधरी की मोत देख कर मंजोपरी मे भगदड मच गइ ! ठाकुर समय सिंह पुण्डीर को पुलिस पकडकर ले गइ  व फांसी की सजा सुनाइ किंतू उनकेबलिष्ठ शरीर व रूप को देखकर एक अंग्रेज अफसर की पत्नी ने उनकी सजा माफ कराकर रिहा करा दिया  !

यह सूचना मंजोपरी वालो को लग गइ की समय सिंह रिहा हो गया है  तब उनको अपनी जान का खतरा होने लगा  , इसी कारण  वहाँ के लोग पलायन कर दूसरी जगह चले गए व वर्तमान  म्यानगी गाँव जहाँ सैनी जाती रहती है व कुछ घर पुण्डीर राजपूतो के वहाँ आकर बसे  !

तब से मंजोपरी गाँव सारा उजाड हो गया वर्तमान  मे वहाँ अंब्हैटा चाँद गाँव वालो के खेत है  !

" श्री क्षत्रिय इतिहास शौध संसथान  "  , सहारनपुर 

शोधकर्ता - यश प्रताप सिंह अंब्हैटा चाँद ( कुँवर बिसलदेव के पुण्डीर  ) 
+91-8755011059 

Wednesday, 12 October 2016

--- इतिहास से छेड छाड क्यू ? ---

जय क्षात्र धर्म 


स्वाभिमान अमर रहे  !

सभी क्षत्रिय वीरो को सादर जय श्री राम हर हर महादेव  !

आज एसे विश्य  पर लिखने जा रहा हूँ जिसे लिखते मन मे बडी पिडा है  , यह देखकर कि किस प्रकार हम क्षत्रियो का इतिहास बिगाडा जा रहा है  , क्या अंधी हो गइ है सरकार जिसे ये दिखाइ नही दे रहा है कि जिन क्षत्रियो ने इस देश के लिए अपना लहू पानी कि तरह बहाया उनके ही इतिहास से सरेआम योजनाबद्ध तरिके से बिगाडा जा रहा है  !

विरोधियो ने कितनी सरलता से कब दिया कि क्षत्रिय और राजपूत भिन्न है  ,मुझे चिंता है उन लोगो की सोच की जो इस प्रकार का विचार भी करते है तो  , क्या उनकी आंखो के सामने वो द्रश्य नही आता कि किस तरह सर कटने के बाद भी क्षत्रिय देश के लिए लडे है  , क्या उनहे ये नही पता इस कुल की स्त्रीयों नै देश हित अपना शीश काट युद्ध हेतू भेंट मे दिया है  , क्यू एसा कर रहे विरोधी  आइए यह समझने का प्रयत्न करते है  ! 

किस प्रकार करी गइ छेड छाड  :- 

1- राजपूत व क्षत्रिय को भिन्न बतादिया गया 
           
          ये विष्य सरल है किंतू अग्यानियो के दुष्प्रचार से यह विष्य जटिल होता गया  , कहते है राजपूत शब्द का उल्लेख 8वीं शताब्दी से पहले नही पढने को मिलता  ! लेकिन इनसे पुछे कि 8वीॉ शताबदी के बाद क्षत्रिय शब्द कहा लुप्त हो गया तो इनकेझुठ का सारा पोल पिटारा खुल जाता है  !
कोइ बताए इन मुर्खो को की 8वी 9वी  शताब्दी के राजाऔ की वंशावली 8वीं शताब्दी के पहले क्षत्रिय राजाऔ तक है  ,
 

राजपूत :- प्राचीन नाम राजपूत्र है  , जिसका जिगर अनेक पुराणिक ग्रंथो मे पढने को मिल जाएगा  , क्षत्रिय राजा के अनेक विवाह होते थे किंतू ज्येष्ठ पुत्र ही राजा हुआ करता था शेष सभी राजा के पुत्र राजपुत्र कहलाते थे  , कालांतर क्षत्रियो के लिए यह शब्द प्रयोग मे आने लगा व राजपूत्र से राजपूत हो गया  !

 

विदेशी शत्रु यवन  , शक  , हुण , अफगानी  , मंगल आदी ये संस्कृत बोलना नही जानते थे  , इनहे रोकने जब क्षत्रिय वीर सीना ताने सामने आ खडे होते थे तब ये क्षत्रिय व राजपूत्र कहने मे असमर्थ थे क्यूकी ये दोनो शब्द संस्कृत के है  , इस लिए वे रजपूत या राजपूत कहकर क्षत्रियो को संबोधित करते थे  , इसका प्रमाण यह है कि दक्षिण के क्षत्रिय आज भी क्षत्रिय ही कहलाते है राजपूत नही  , क्यूकी वहा विदेशी आक्रमकारी नही पहुचे थे जिस कारण व दक्षिण के क्षत्रियो को राजपूत से संभोदित नही कर सके... 


मेवाड राजघराना  , मारवाड राजघराना  , सिरोही आदी सभी के रिकोर्ड इतिहास मे क्षत्रिय व राजपूत दोनो शब्दो का प्रयोग हुआ है तो क्या केवल इस आधार पर कि राजपूत और क्षत्रिय भिन्न है क्युकी 8वीं सदी से पहले राजपूत नाम नही मिलता ये निरादर व पूर्ण काल्पनिअप्रमाणित कथन है  !

वर्तमान राजपूतो की वंशावली रघुकुल तक व चंद्र वंशी  राजपूतो की वंशावली महाभारत काल तक से भी पहले तक है... 
भगवान सूर्यदेव व चंद्रदेव से वर्तमान तक की वंशावली आज भाटो के पास है   , तो क्यू राजपूतो को विदेशी बताया गया  ??

15वी शताब्दी के महाराणा प्रताप  , जैमल सिंह  , रामशाह तँवर आदी वीर योद्धा थे जिनहे राजपूत कहकर संबोधित किया गया है किंतू अगर इन वीरो का वंश व्रक्ष देखे तो इनके पुर्वजो के नाम भगवान श्री राम व महाभारत के वीर योद्धा अर्जून तक जाती है.... जो कि काफी होगा ये साबित करने के लिए उन लोगो के लिए जो इतिहास को इर्षावश एक तरफा पढना चाहते है  !

मै आज 21वी शताबदी मे हूँ किंतू मेरे पूर्वज 11वी श्ताबदी मे भी थे  और 4थी शताबदी मे भी थे और महाभारत व रामायण काल मे भी थे  , तो ये कथन राजपूत व क्षत्रिय भिन्न है इसी बात से खंडित हो जाता है  !!!

राजपूत क्षत्रियो का टाइटल है जैसे राणा  , ठाकुर  , बन्ना  आदी  , किंतू  कम बुद्धी व विरोधियो ने राजपूत को अगल ही जाती बना डाली  !


आज एक और चलन चल रहा है कि हर कोइ खुद को क्षत्रिय कहने लगा है  , जैसे जाट  , गुज्जर  , आहीर  , मेघवाल  , आदी  .... ये बडा चिंता का विष्य है  , हाँ ये भी क्षत्रिय है  , किंतू वर्ण शंकर  ! क्षत्रियो के कुल जो विभिन्न कुल मे प्रचलित है वे सभी क्षत्रिय पिता व अन्य जाती की माता द्वारा पैदा संतानो के वंशज है  यानी वर्ण शंकर है  , किंतू क्षत्रियो मे शुुद्ध रक्त की पवित्रता की परंपरा आदी काल से है  ! जो क्षत्रिय किसी दूसरी जाती की कन्या से विवाह कर लेता था तो उनसे जन्मी संतानो को क्षत्रियो मे नही माना जाता था  , इसके कइ प्रमाण है  , जैसे ग्वालियर का गूजरी महल  , जो आज भी राजपूत राजामान सिंह तौमर व उनकी गुज्जर रानी की कथा का प्रमाण है  , और इनकी संताने तौंगर गुज्जर है  वे खुद को मान सिंह के वर्ण शंकर मानते है  ! 


एसे अनेक उदहारण है जो सिद्ध करदेते है कि क्षत्रियो के कुल दूसरी जातियो मे पाए जाने का अर्थ यही है जो उपर बताया है  , जिसके बारे मे आप " गुर्जर कूटनिती भाग -2 " मे पढोंगे  !

                     धन्यावाद  !

" श्री क्षत्रिय इतिहास शौध संसथान " , सहारनपुर 

शौधकर्ता :- यश प्रताप सिंह अंब्हैटा चाँद ( कुँवर बिसलदेव के पुण्डीर )  , प्रशांत सिंह मढाड ( गढि मुलतान,  करनाल -हरियाणा)  , +91-8755011059 

Monday, 10 October 2016

विजय दशमी पर धीरसिंह पुण्डीर की प्रतिग्या

जय क्षात्र धर्म !

स्वाभिमान अमर रहे ! 


विक्रमी संवत 1523 नवरात्रो मे दिल्लीपति प्रथ्वीराज चौहान ने " विजयदशमी " पर एक प्रतियोगिता रखने का एलान किया  ! 

प्रतियोगिता मे 7 गज लंबा अष्ट धातु का सतंब जमीन मे गडवादिया  और यह आदेश दिया की जो इस स्तंब को उखाडेगा उसे सर्वश्रेष्ठ योद्धा का खिताब दिया जाएगा  !  विजय दशमी पर प्रतियोगिता शुरू हुइ  वीर चामुॉडराय  , पज्जवन राय  , जैत्र सिंह परमार आदी योद्धाऔ ने अपना बल आजमाया किंतू कामयाब नही हुए  , यह देख प्रथ्वीराज चौहान को चिंता हुइ व अपनी सांग को सतंभ मे गाड दिया  और कहाँ कोइ ये सांग ही निकालदे  , किंतू कोइ वीर यह कार्य भी नही कर सका   , तभी वहा मायापुर( वर्तमान हरिद्वार  , सहारनपुर  ) के महाराज व प्रथ्वीराज के वीर सामंत चांद सिंह पुण्डीर के पुत्र  धीरसिंह पुण्डीर वहा पधारे  , उनहोने यह स्तंब उखाडने की बात करी जिस कारण प्रथ्वीराज चौहान को खुशी हुइ व अपना घोडा धीर सिंह को दिया  !

 
तभी धीर सिंह पुण्डीर घोडे पर स्वार हो सतंब की और गए तभी  सहज भाव सांग सहित सतंब को एक झटके मे उखाड दिया  , यह दैख सभा मे धीर सिंह की जस जय कार होने लगी  , इस कारण इर्षा वश जैत्र परमार धीर सिंह पुण्डीर से चिडने लगा  !

विजयदशमी के दिन धीर सिंह ने मौह्मद गोरी को बंदी बनाने की प्रतिग्या करी व हांसी के युद्ध के बाद 3रे युद्ध मे धीर सिंह अपने साथ 1400 सामंतो को साथ लेकर युद्ध मे प्रतिग्या पूरी करने हेतू सम्मिलित हुए व गोरी को बंदी बनाकर प्रथ्वीराज के चरणो मे ला पटका !

इस युद्ध मे राम राय पुण्डीर  , रघुपुण्डीर समेत 3 सहसत्र पुण्डीर क्षत्रिय वीरगती को प्राप्त हुए !

 विजय दशमी क्षत्रियो के लिए एक गर्व का त्योहार है.... 


Reference :- प्रथ्वीराज रासो  , भाट हस्त लिखीत इतिहास 


" श्री क्षत्रिय राजपूत इतिहास शौध संसथान " , सहारनपुर 
शोधकर्ता :- यश प्रताप सिंह अंब्हैटा चाँद ( कुँवर बिसलदेव के पुण्डीर ) , +91-8755011059

Monday, 3 October 2016

गुर्जर ( गोचर) कूटनिती , भाग - 1

जय क्षात्र धर्म जय भवानी..... 


आज इतिहास मे बिना कुछ किए  खुद को उच्च साबित करने का भरपूर प्रयास हमारे कुछ गुज्जर भाइ कर रहे है... इस कडी मे उनहोने कइ पोसट्स व कुछ पुस्तके भी लिखी जिसमे सम्राट मिहीर भोज  , प्रथ्विराज चौहान  , बाप्पा रावल  , शिवाजी  आदी सभी क्षत्रिय यौद्धाऔ को गुर्जर बनानै का प्रयास किया है..! 

जबकी यै ही खुद कि सही उतपत्ती खोजने मे असमर्थ है  , देखिए गुज्जरो की उतपत्ती उनही कि जुबानी. ..

1- गुर्जर हुणौ के वंशज है  .
2- कुषाण भी गुर्जर है.


इतिहास सप्षट बताता है  हुण हो या शक. यह सभी घुमंतू कबिले है जो पशुपालन का कार्य करते थे. !
V. M. Smith or Villiams Crooks ने तो गुजरो को साफ साफ श्वेत हुणो से संबंधित बताया है  !

अब आशचर्य की बात यह हैवर्तमान के आधुनिक गुज्जर इतिहास प्रेमी खुद को हुण व कुषाण भी मानते है और खुद को क्षत्रिय भी बताने लगे है..  क्या ये संभव है  ?
कहाँ हुणौ और कुषाणौ को क्षत्रिय लिखा है  ???


गुर्जरो के इतिहासकार डाँ. सुधीर भाटी जी गुर्जरो को हुण से जोडते है वही दूसरी और एक और गुर्जर इतिहासकार डा. के आर गुर्जर महाराज दशरथ को गुर्जर बताकर क्षत्रिय इतिहास का अपमान करते है... 

डाँ. सहाब कहते है गुरूतर शब्द का अर्थ गुर्जर है.. वह रामायण का एक श्लोक देते है जिसमे गुरूतर शब्द आया और इसी को गुर्जर शब्द की उतपत्ती मानी :-

" गतो दशरथ स्वर्ग योनो गुरूतरो गुरूव: "

जब्की इसका अगक सही से आकलन करे तो पता चलता है इस श्लोक से गुज्जरो का कोइ संबंध नही  , इस श्लोक का सही अर्थ है  " दशरथ जी अपने गुरू व गोरव के साथ स्वर्ग को गए "  
अब आप बताइए क्या मतलब है एसे झुठै त्थ्यो का  ??

डाँ. सी.वी.वैध ने गुर्जपशुपालक तथा क्रषी कर्म करने वाला बताकर वैशय वर्ण से माना है  !

बात यह है कि प्राचीन प्राप्त शिलालेखो मे कइ बार गुर्जरान  , गुर्जरत्रा  , गुर्जेश्वर शब्द आए है  , जिस कारण भ्रमित होकर कइयो ने इन शबदो को गुर्जर जाती से जोड लिया  , जबकी महान इतिहासकार डाँ. के एम मुंशी जी ने अपनी पुस्तक ' द ग्लोरिज औफ डैट गुर्जर देश ' मे साफ साफ सिद्ध किया है कि  ' प्रतिहारो ' ने खुद को कभीअपने आप गुर्जर  शब्द का प्रयोग नही किया  और यह भी सिद्ध किया है कि प्रतिहार गुर्जर देश के स्वामी होने के कारण इनके विरोधियो ने गुर्जर प्रतिहार परिभाषित कर दिया  ! जब इनके शिलालेखो का हम अध्यन्न करते है तो प्रतिहारो के  शिलालेखो तथा कन्नोज के प्रतिहारो के शिलालेखो मे यह सप्ष्ट तोर पर बताया है कि अयोध्या के श्री राम के भ्राता लक्ष्मण के वंशज  प्रतिहार है  !  अभिलेखो मे इतना साभ वर्णन प्रतिहार उतपत्ती का इतना साफ वर्णन किया है पर फिर भी आजकल के कुछ विद्वान हठधर्मी से इनहे गुर्जर ही मानते है... 

प्रतिहार वंश कि उतपत्ती मे कही भी गुर्जर शब्द नही आया :- 
जोधपुर का शिलालेख 

 " स्वभ्राता रामभद्रस्य प्रतिहार क्रतं यत: 
 श्री प्रतिहार वंशजो यमतक्ष्चौन्नति माप्नुयात!! 3,4 !! "

घटियाल अभिलेख 

" रहुतिलऔपडिहारो आसीसिर लक्खणोंतिरामस्य 
तेण पडिहारवन्सो समुणईएत्थसम्पतो  ! "


बताइए उतपत्ती मे ही जब गुर्जर शब्द नही तो क्यु ये जबरन खुद को प्रतुहीरो से जोड प्रसिद्धी पाने मे लगे है   ? 
                                  

भोज प्रतिहार की ग्वालियर प्रशस्ति  का अध्यन्न  या वि. स. 1030 की विग्रहराज की प्रशस्ति  का या औसिया के महावीर मंदिर का लेख पढलो कही भी प्रतिहारो ने खुद के शिलालेखो मे गुर्जर नही लिखा  तो ये जबरन इस वंश को गुर्जर बनाने मे लगे है  ??

डाँ. के एम मुंशी की मान्यता है कि प्रतिहारो के लिए गुर्जर शब्द का प्रयोग जो राष्ट्रकूट और अरबो ने किया है वह किसी जाती का घोतक नही वह तो इनका गुर्जर देश का निवासी होने का संकेत करता है  , औझा ने भी प्रतिहारो को गुर्जर ना मानकर क्षत्रिय कहाँ है  ! 

गुर्जरत्रा  ( गुर्जरात) या गुर्जर का अर्थ है क्या  ??

गुर्जर एक संसक्रत शब्द है जिसका अर्थ है शत्रु नाशक व गुर्जरत्रा का अर्थ हैं शत्रु नाशको की भुमी  !
अब गुर्जर जब खुद को हुण व कुषाण मानते है व है हि तो यह तो भारत के मूल नही थे व ना ही इनका संस्कृत भाषा से कोइ संबंध था  ! हुणो का बहोत बडा कबिला गब गुर्जरत्रा पर निवास करने लगा तो यहाँ से निकासी के बाद गुर्जर कहलाया  , वर्तमान मे हाडोती ( राजस्थान)  व अन्य जगहो पर गुर्जरो के गाँव है जहाँ हुण गोत्र भी मिलता हैं 
..

महारष्ट्र मे गुर्जर नाइ  , गुर्जर दर्जी  , गुर्जर ब्रह्माण निवास करते है  , जो जाती से गुर्जर नही अपितु उनके पुर्वज गुर्जरत्रा से वहा गए इसि तरह हुणो का यह घुमंतू चरवाहो का झुंड जब प्रतिहार राजपूतो ने भगाया तब ये बहार आकर गुर्जर कहलाए  व धीरे धीरे गुज्जर  , गुजर आदी..ncert कि पुस्तके इनहे ' घुमंतू चरवाहा ( gujar bakarwals)  ' लिखते है  
 | 

वर्तमाम मे प्रतिहारो के वंशज क्षत्रिय है गुर्जर नही व प्रतिहारो की रियासत भी क्षत्रियो के पास है न कि गुज्जरो के पास....


----------- अगले भाग मे ओर एसी जानकारी दि जाएगी जो यह साबित करेगी कि गुजजरो का क्षत्रियो से कोइ संबंध नही  , संबंध है तो वर्ण शंकरता का केवल ----------
                                                     -- धन्यावाद  !

" श्री क्षत्रिय राजपूत इतिहास शौध संसथान  , सहारनपुर  " , शौधकर्ता :- क्षत्रिय यश प्रताप सिंह अंब्हैटा चाँद ( कुँ बिसलदेव के पुण्डीर ) .... +91-8755011059 


Sunday, 2 October 2016

पुण्डीर क्षत्रियो की वंशावली व गोत्राचार्य

सूर्यकुल पुण्डीर वंश 

वंश - सूर्य.
गौत्र - पौलिस्त / पुलत्सय.
प्रवर - महार्षि पौलिस्त  , महार्षि दंभौली , महार्षि विश्वाश्रवस.
कुल - पुण्डरीक / पुण्डीर / पुण्ढीर.
शाखा - तीसरी शताबदी के महाराज पुण्डरीक द्वितीय से.
निकास - अयोध्या से तिलांगाना व तिलंगाना से हरियाणा ( < करणाल, कुरूक्षेत्र,  कैथल > ) व पुण्डरी से मायापुर (7 हरिद्वार व पश्चिम उत्तर प्रदेश).
कुलदेवी - दधिमाता ( जिला - नागौर  ,तहसील - जायल , गाँव - गौठ मंगलोद :- राजस्थान )
कुलदेवता - महादेव.
पक्षि - सफेद चील.
नदी - सर्यू.
पेड - कदंब.


भगवान श्री राम के पुत्र की 158वीं पिढी मे महाराज पुण्डरीक द्वितीय हुए ( नौट-158 पिढीयो के नाम उपस्थित है यहाँ नही लिखे जा रहे है) 


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महाराज पुण्डरीक द्वितीय ( तीसरी शताबदी के अंत मे) -- असम -- धनवंत -- बाहुनिक - राजा लक्षण कुमार (  तिलंगदेव :- तिलंगाना शहर बसाया ) -- जढेश्नर ( जढासुर :- कुरूक्षेत्र स्नान हेतू सपरिवार व सेना सहित कुरूक्षेत्र पधारे ) -- मंढेश्वर ( मँढासुर :- सिंधुराज की पुत्री अल्पदे से विवाह कर कैथल क्षेत्र दहेज मे प्राप्त किया व " पुण्डरी " नगर की स्थापना हुइ)  -- राजा सुफेदेव -- राजा इशम सिंह ( सतमासा :- इस कथा का वर्णन पिछले ब्लोग मे कर चुका हूँ ) -- सीरबेमस -- बिडौजी -- राजा कदम सिंह ( निमराणा के चौहान शस्क हरिराय से दूसरे युद्ध मे पराजय मिली व इनके पुत्र हंस ने मायापुरी मे राज्य कायम कर 1440 गाँवो पर अधिकार किया) -- हंस ( वासुदेव) -- राजा कुंथल ( मायापुर के स्वामी बने व इनके 12 पुत्र हुए)  

1- अजट सिंह ( इनके पुण्डीर वंशज गोगमा  , हिनवाडा आदि गाँव मे है जो जिला शामली मे है  )
2- अणत सिंह ( इनके पुण्डीर वंशज दूधली  , कसौली  , कछ्छौली आदि गाँव मे है  )
3- लाल सिंह ( अविवाहित) 
4- नौसर सिंह ( पता नही) 
5- सलाखनदेव ( मायापुर राज्य मे रहा) 


राजा सुलखन ( सलाखन देव)  के 2 पुत्र हुए  !



1- राजा चाँद सिंह पुण्डीर ( मायापुरी के राजा बने व दिल्ली पति संम्राट प्रथ्विराज चौहान के सामंत बने व इनका पुत्र पंजाब का सुबेदार बना  , इस वीर चाँद सिंह की वीरता प्रथ्विराज रासौ मे स्वर्ण अक्षरो मे अमर है) 
2-राजा गजै सिंह पुण्डीर ( यहं गंगा पार कर एटा  , अलिगढ क्षेत्र गए व इनके वंशज 82 गाँव मे विराजमान है )

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राजा चाँद सिंह पुण्डीर के 7 पुत्र हुए 

1- वीर योद्धा धीर सिंह पुण्डीर 
2- कुँवर अजय देव 
3- कुँवर उदय देव 
4- कुँवर बिसलदेव 
5- कुवर सौविर सिंह 
6- कुँवर साहब सिंह 
7- कुंवर वीर सिंह 

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इनमे धीर सिंह पुण्डीर मीरो से लडते हुए वीर गती को प्रापत हुए व इनके पुत्र पावस पुण्डीर तराई के अंतिम युद्घ मे प्रथ्विराज चौहान के सहयोगी बन कर लौहाना आजानबाहू का सर काटकर वीरगती को प्राप्त हुए  !

चांद सिंह के इन पुत्रो के वंशज आज सहारनपुर  जिले मे विराजमान है जिनके ठिकानो कि संख्या कम से कम 120-130 है....... 

-------- आगे आपको पुण्डीर वंश के और इतिहास से परिचित कराया जाएगा  , क्युकी अन्य वंशौ कि भांति इतिहास मे पुण्डीर वंश पर कोइ इतिहासकार प्रकाश नही डाल पाया  , मेरी यही कोशिश है कि इतिहास प्रेमी क्षत्रियो के इस पुण्डीर कुल के बारे मे भी जाने -------

       
            धन्यवाद

"श्री क्षत्रिय राजपूत इतिहास शौध संसथान  , सहारनपुर " +91-8755 011059 

शौधकर्ता :- यश प्रताप सिंह अंब्हैटा चाँद ( कुँवर बिसलदेव के पुण्डीर ) 
पुस्तक :- " सूर्यकुल पुण्डीर वंश " ( अप्रकाशित  )..........