Wednesday, 12 October 2016

--- इतिहास से छेड छाड क्यू ? ---

जय क्षात्र धर्म 


स्वाभिमान अमर रहे  !

सभी क्षत्रिय वीरो को सादर जय श्री राम हर हर महादेव  !

आज एसे विश्य  पर लिखने जा रहा हूँ जिसे लिखते मन मे बडी पिडा है  , यह देखकर कि किस प्रकार हम क्षत्रियो का इतिहास बिगाडा जा रहा है  , क्या अंधी हो गइ है सरकार जिसे ये दिखाइ नही दे रहा है कि जिन क्षत्रियो ने इस देश के लिए अपना लहू पानी कि तरह बहाया उनके ही इतिहास से सरेआम योजनाबद्ध तरिके से बिगाडा जा रहा है  !

विरोधियो ने कितनी सरलता से कब दिया कि क्षत्रिय और राजपूत भिन्न है  ,मुझे चिंता है उन लोगो की सोच की जो इस प्रकार का विचार भी करते है तो  , क्या उनकी आंखो के सामने वो द्रश्य नही आता कि किस तरह सर कटने के बाद भी क्षत्रिय देश के लिए लडे है  , क्या उनहे ये नही पता इस कुल की स्त्रीयों नै देश हित अपना शीश काट युद्ध हेतू भेंट मे दिया है  , क्यू एसा कर रहे विरोधी  आइए यह समझने का प्रयत्न करते है  ! 

किस प्रकार करी गइ छेड छाड  :- 

1- राजपूत व क्षत्रिय को भिन्न बतादिया गया 
           
          ये विष्य सरल है किंतू अग्यानियो के दुष्प्रचार से यह विष्य जटिल होता गया  , कहते है राजपूत शब्द का उल्लेख 8वीं शताब्दी से पहले नही पढने को मिलता  ! लेकिन इनसे पुछे कि 8वीॉ शताबदी के बाद क्षत्रिय शब्द कहा लुप्त हो गया तो इनकेझुठ का सारा पोल पिटारा खुल जाता है  !
कोइ बताए इन मुर्खो को की 8वी 9वी  शताब्दी के राजाऔ की वंशावली 8वीं शताब्दी के पहले क्षत्रिय राजाऔ तक है  ,
 

राजपूत :- प्राचीन नाम राजपूत्र है  , जिसका जिगर अनेक पुराणिक ग्रंथो मे पढने को मिल जाएगा  , क्षत्रिय राजा के अनेक विवाह होते थे किंतू ज्येष्ठ पुत्र ही राजा हुआ करता था शेष सभी राजा के पुत्र राजपुत्र कहलाते थे  , कालांतर क्षत्रियो के लिए यह शब्द प्रयोग मे आने लगा व राजपूत्र से राजपूत हो गया  !

 

विदेशी शत्रु यवन  , शक  , हुण , अफगानी  , मंगल आदी ये संस्कृत बोलना नही जानते थे  , इनहे रोकने जब क्षत्रिय वीर सीना ताने सामने आ खडे होते थे तब ये क्षत्रिय व राजपूत्र कहने मे असमर्थ थे क्यूकी ये दोनो शब्द संस्कृत के है  , इस लिए वे रजपूत या राजपूत कहकर क्षत्रियो को संबोधित करते थे  , इसका प्रमाण यह है कि दक्षिण के क्षत्रिय आज भी क्षत्रिय ही कहलाते है राजपूत नही  , क्यूकी वहा विदेशी आक्रमकारी नही पहुचे थे जिस कारण व दक्षिण के क्षत्रियो को राजपूत से संभोदित नही कर सके... 


मेवाड राजघराना  , मारवाड राजघराना  , सिरोही आदी सभी के रिकोर्ड इतिहास मे क्षत्रिय व राजपूत दोनो शब्दो का प्रयोग हुआ है तो क्या केवल इस आधार पर कि राजपूत और क्षत्रिय भिन्न है क्युकी 8वीं सदी से पहले राजपूत नाम नही मिलता ये निरादर व पूर्ण काल्पनिअप्रमाणित कथन है  !

वर्तमान राजपूतो की वंशावली रघुकुल तक व चंद्र वंशी  राजपूतो की वंशावली महाभारत काल तक से भी पहले तक है... 
भगवान सूर्यदेव व चंद्रदेव से वर्तमान तक की वंशावली आज भाटो के पास है   , तो क्यू राजपूतो को विदेशी बताया गया  ??

15वी शताब्दी के महाराणा प्रताप  , जैमल सिंह  , रामशाह तँवर आदी वीर योद्धा थे जिनहे राजपूत कहकर संबोधित किया गया है किंतू अगर इन वीरो का वंश व्रक्ष देखे तो इनके पुर्वजो के नाम भगवान श्री राम व महाभारत के वीर योद्धा अर्जून तक जाती है.... जो कि काफी होगा ये साबित करने के लिए उन लोगो के लिए जो इतिहास को इर्षावश एक तरफा पढना चाहते है  !

मै आज 21वी शताबदी मे हूँ किंतू मेरे पूर्वज 11वी श्ताबदी मे भी थे  और 4थी शताबदी मे भी थे और महाभारत व रामायण काल मे भी थे  , तो ये कथन राजपूत व क्षत्रिय भिन्न है इसी बात से खंडित हो जाता है  !!!

राजपूत क्षत्रियो का टाइटल है जैसे राणा  , ठाकुर  , बन्ना  आदी  , किंतू  कम बुद्धी व विरोधियो ने राजपूत को अगल ही जाती बना डाली  !


आज एक और चलन चल रहा है कि हर कोइ खुद को क्षत्रिय कहने लगा है  , जैसे जाट  , गुज्जर  , आहीर  , मेघवाल  , आदी  .... ये बडा चिंता का विष्य है  , हाँ ये भी क्षत्रिय है  , किंतू वर्ण शंकर  ! क्षत्रियो के कुल जो विभिन्न कुल मे प्रचलित है वे सभी क्षत्रिय पिता व अन्य जाती की माता द्वारा पैदा संतानो के वंशज है  यानी वर्ण शंकर है  , किंतू क्षत्रियो मे शुुद्ध रक्त की पवित्रता की परंपरा आदी काल से है  ! जो क्षत्रिय किसी दूसरी जाती की कन्या से विवाह कर लेता था तो उनसे जन्मी संतानो को क्षत्रियो मे नही माना जाता था  , इसके कइ प्रमाण है  , जैसे ग्वालियर का गूजरी महल  , जो आज भी राजपूत राजामान सिंह तौमर व उनकी गुज्जर रानी की कथा का प्रमाण है  , और इनकी संताने तौंगर गुज्जर है  वे खुद को मान सिंह के वर्ण शंकर मानते है  ! 


एसे अनेक उदहारण है जो सिद्ध करदेते है कि क्षत्रियो के कुल दूसरी जातियो मे पाए जाने का अर्थ यही है जो उपर बताया है  , जिसके बारे मे आप " गुर्जर कूटनिती भाग -2 " मे पढोंगे  !

                     धन्यावाद  !

" श्री क्षत्रिय इतिहास शौध संसथान " , सहारनपुर 

शौधकर्ता :- यश प्रताप सिंह अंब्हैटा चाँद ( कुँवर बिसलदेव के पुण्डीर )  , प्रशांत सिंह मढाड ( गढि मुलतान,  करनाल -हरियाणा)  , +91-8755011059 

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